जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या बेहद जटिल हो चुकी है, तो इसका एक बड़ा कारण आतंकी संगठनों को कभी-कभार मिलने वाली स्थानीय मदद भी है। अगर आतंकवाद से लड़ने वाले तंत्र में ही कुछ लोग ऐसे हों, जो परोक्ष रूप से आतंकियों के मददगार हों, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे हालात पैदा हो सकते हैं। शनिवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जिस तरह नार्को-आतंकवाद से कथित संबंधों के आरोप में पांच पुलिसकर्मियों सहित छह कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया, उससे रेखांकित होता है कि वहां आतंकवाद की समस्या अपने किस जटिल स्वरूप में मौजूद है।

सरकारी कार्रवाई की जद में आए लोग आतंकवाद के वित्तपोषण में लिप्त मिले

सरकार की ओर से कराई गई जांच में सामने आया कि जिन लोगों को सेवा से बर्खास्त किया गया है, वे पाकिस्तानी जासूसी एजंसी (आइएसआइ) और सीमा पार पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी समूहों द्वारा संचालित नार्को-आतंकवाद का हिस्सा थे। सरकारी कार्रवाई की जद में आए पुलिसकर्मी और कर्मचारी मादक पदार्थों की बिक्री के जरिए आतंकवाद के वित्तपोषण में लिप्त पाए गए।

दरअसल, कुछ मादक पदार्थों की खेती भारतीय क्षेत्र में नहीं की जाती, पर पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद में इनका इस्तेमाल हथियार के तौर पर हो रहा है। भारत में इसकी तस्करी और खपत कई आतंकी नेटवर्कों के जरिए पाकिस्तान से होती है। आतंकी संगठन आमतौर पर युवाओं को अपने प्रभाव में लेते और मादक पदार्थों के जरिए उन्हें आतंकी जाल का हिस्सा बनाते हैं। ऐसे में स्थानीय समुदायों के बीच आतंकवादियों की घुसपैठ की समस्या में अगर खुद पुलिस महकमे के कोई अधिकारी या कर्मी हिस्सेदारी करने लगें तो इस समस्या की जटिलता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शायद यही वजह है कि कई बार आतंकवादी संगठन घाटी में अपना जाल फैलाने और अक्सर हमले करने में कामयाब हो जाते हैं। जो तंत्र आतंकवाद मिटाने में लगा है, अगर उसके आंतरिक ढांचे में ही आतंकी संगठनों की घुसपैठ हो जाए, तो मुश्किलें बढ़ेंगी ही। इसलिए सरकार को अपने समूचे तंत्र में हर स्तर पर ऐसे तत्त्वों की पहचान करने की जरूरत है, जो किसी भी रूप में आतंकवादी संगठनों के लिए मददगार हो सकते हैं।