भष्टाचार पर लगाम लगाने के उपायों में पारदर्शिता को एक सबसे अहम कड़ी माना जाता रहा है। यही वजह है कि सांस्थानिक स्तर पर उच्च पदों पर नियुक्त लोगों की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने को लेकर अक्सर आवाज उठती रही है। इस क्रम में न्यायाधीशों से भी उनकी संपत्ति का खुलासा करने की अपेक्षा की जाती है। मगर इस मसले पर उठे सवालों के बावजूद कोई ऐसी व्यवस्था नहीं बन पाई जिसमें न्यायाधीशों के लिए अपनी जायदाद की जानकारी को सार्वजनिक करना अनिवार्य हो। यों अलग-अलग अदालतों के कुछ जज अपनी संपत्ति की घोषणा करते रहे हैं, लेकिन ऐसी पहलकदमी का महत्त्व सीमित ही रहा।
अब इस मसले पर देश के सर्वोच्च न्यायालय की ओर से एक अहम पहल की गई है। इसके तहत यह फैसला लिया गया है कि शीर्ष अदालत के प्रधान न्यायाधीश और अन्य सभी जज अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करेंगे। हालांकि यह स्वैच्छिक आधार पर किया जाएगा। यानी न्यायाधीशों ने किसी कानूनी बाध्यता की वजह से नहीं, बल्कि स्वेच्छा से अपनी संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करने का फैसला किया है।
सबसे सामने होगा न्यायाधीशों की संपत्ति का ब्योरा
निश्चित रूप से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की इस पहल ने न्यायपालिका में पारदर्शिता को लेकर देश भर में वैसे तमाम लोगों का ध्यान खींचा है, जो भ्रष्टाचार को व्यवस्था की एक सबसे बड़ी समस्या मानते हैं और उसके हल के उपायों में पारदर्शिता की अहमियत को प्राथमिक बताते हैं। अन्य सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए अगर कोई नीति बनाई जाती है, नियम लागू किए जाते हैं, तो उसे लागू होने में व्यवस्थागत स्तर पर हुई लापरवाही या उदासीनता के खिलाफ कई बार अदालतों का रुख भी करना पड़ सकता है।
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जाहिर है, भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए अगर किसी अदालत में एक नियम को जरूरी बताया जाता है, तो उस कसौटी पर न्यायाधीश को रखने की भी उम्मीद की जाएगी। इस लिहाज से देखें तो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति के ब्योरे को सार्वजनिक पटल पर रखने का फैसला किया है, तो इसका दूरगामी महत्त्व है। यह फैसला खासतौर पर इसलिए भी अहम माना जा रहा है कि हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक जज के घर में करोड़ों की नकदी मिलने की खबर आई थी और उसके बाद जजों की आय और संपत्ति को लेकर कई तरह के सवाल उठे हैं।
सूचना का अधिकार कानून के समय से ही उठ रही थी मांग
दरअसल, सूचना का अधिकार कानून लागू होने और कुछ न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई थी कि जजों की संपत्ति को लेकर भी पारदर्शिता क्यों नहीं सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसी क्रम में वर्ष 2009 में सर्वोच्च न्यायालय और सभी उच्च न्यायालय के जजों ने नियमित रूप से अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने का संकल्प लिया था, लेकिन उसका कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। इस संबंध में एक संसदीय समिति भी अपनी एक रपट में यह कह चुकी है कि जजों की संपत्ति की घोषणा को अनिवार्य बनाने के लिए एक कानून लाया जाना चाहिए।
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दरअसल, जब तक जजों की ओर से नियमित रूप से अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने की प्रक्रिया को संस्थागत रूप नहीं दिया जाएगा, तब तक इस संबंध में सिर्फ निजी स्तर पर की गई पहल या संकल्प के बूते इसमें निरंतरता बनाए रखना मुश्किल साबित होगा। जबकि अगर न्यायाधीशों की संपत्ति को लेकर एक पारदर्शी व्यवस्था बनाई जाती है, तो इससे समूची व्यवस्था में जनता का भरोसा बढ़ेगा और न्यायपालिका की विश्वसनीयता में इजाफा होगा।