भारत आतंकवाद के खिलाफ सभी देशों को एकजुट करना चाहता है। साइप्रस, कनाडा और क्रोशिया की यात्रा से पहले प्रधानमंत्री का यह कहना इस मायने में महत्त्वपूर्ण है कि आतंकवाद के मुद्दे पर सभी देशों को एकजुट करने का यही अवसर है। उन्होंने यात्रा के पहले चरण में साइप्रस को चुन कर पाकिस्तान के मित्र तुर्किये को एक तरह से कूटनीतिक संदेश दिया है। दरअसल, भारत और साइप्रस के मसले लगभग एक जैसे हैं।

तुर्किये ने साइप्रस के वरोशा शहर पर ठीक उसी तरह से कब्जा कर रखा है, जिस तरह से पाकिस्तान ने कश्मीर के एक हिस्से पर। क्रोशिया की यात्रा में साइप्रस को शामिल करने के पीछे भारत की अपनी रणनीति है। गौरतलब है कि साइप्रस और भारत की समान वैश्विक चिंताएं हैं। आतंकवाद के खिलाफ भी उनका समान रुख है। दोनों ने स्पष्ट कर दिया है कि यह युद्ध का युग नहीं। कोई दो मत नहीं कि दुनिया के कुछ हिस्सों में चल रहे संघर्ष को संवाद से ही टाला जा सकता है। भू-राजनीतिक तनाव के बीच प्रधानमंत्री ने साइप्रस के राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद विश्व को यही संदेश दिया है।

जी-7 शिखर सम्मेलन में दुनिया के नेताओं से मिलेंगे मोदी

प्रधानमंत्री की यात्रा में सबसे अहम पड़ाव कनाडा है, जहां जी-7 शिखर सम्मेलन में उन्हें आतंकवाद के खिलाफ भारत का पक्ष बताने के साथ वैश्विक दक्षिण की प्राथमिकताओं पर भी विचार रखने का अवसर मिलेगा। आपरेशन सिंदूर के बाद विश्व के नेताओं के बीच प्रधानमंत्री की यह पहली उपस्थिति है। सम्मेलन में साझेदार देशों से संबंध प्रगाढ़ करने के साथ प्रौद्योगिकी, ऊजा व रक्षा सहित कई वैश्विक मुद्दों पर चर्चा से भारत के लिए नई राह खुलेगी।

लापरवाही की परत दर परत, किसी भी दुर्घटना से सीख नहीं ले रहा शासन-प्रशासन

प्रधानमंत्री के दौरे से कनाडा से संबंध सुधरने की उम्मीद है। जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए गए थे। जिससे दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ गई थी। शिखर सम्मेलन में भारत को न्योता देकर कनाडा ने वैश्विक कूटनीति को प्राथमिकता दी है। वह जानता है कि भारत उभरती ताकत है और उसके बिना सात देशों का विशिष्ट समूह अधूरा है।