एक बार फिर दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण पर लगाम कसने के मकसद से कारों के लिए सम-विषम फार्मूला लागू कर दिया है। जनवरी में प्रयोग के तौर पर जब इसे लागू किया गया तो उसके सकारात्मक नतीजे आए थे। उसी से उत्साहित होकर सरकार ने एक बार फिर पंद्रह दिनों के लिए यह फार्मूला लागू किया है। मगर सवाल है कि अगर सम-विषम फार्मूला लागू करने से सकारात्मक नतीजे देखे गए तो फिर इस मामले में कोई स्थायी व्यवस्था करने पर विचार क्यों नहीं किया गया। पिछली बार सम-विषम फार्मूले की वजह से वायु प्रदूषण में कमी दर्ज की गई थी। हालांकि यह कमी मामूली थी, पर सबसे अधिक असर यातायात पर पड़ा था।

सड़कों पर वाहनों की संख्या कम होने से आवागमन सुचारु हो गया था। यह साबित हुआ था कि अगर वाहनों के अतार्किक इस्तेमाल पर अंकुश लग जाए तो यातायात संबंधी परेशानियां काफी हद तक कम की जा सकती हैं। हालांकि जनवरी में लोगों ने सम-विषय योजना को सफल बनाने में काफी सहयोग दिया, मगर बहुत सारे लोगों ने इसे अपने अधिकारों पर अंकुश के रूप में देखते हुए आलोचना की थी। इस बार भी कुछ लोगों का ऐसा ही तर्क है। मगर प्रदूषण पर रोक लगाना लोगों की सेहत से जुड़ा मुद््दा है, इसलिए अदालतों ने भी सम-विषम फार्मूले को उचित करार दिया था। अगर किसी व्यवस्था से अधिसंख्य लोगों को लाभ पहुंचता हो तो उसमें हिचक क्यों होनी चाहिए। मगर सरकार इसे थोड़े-थोड़े समय के लिए प्रायोगिक तौर पर लागू कर रही है तो उसकी मजबूरियां समझी जा सकती हैं।

पिछली बार सम-विषम फार्मूले के दौरान सड़कों पर अतिरिक्त बसें उतारी गर्इं, मेट्रो के फेरे बढ़ाए गए, फिर भी लोगों को कई तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ा था। लगता है इस मोर्चे पर सरकार अभी अपने को पूरी तरह तैयार नहीं कर पाई है। फिर यह भी कि केवल कारों पर यह फार्मूला लागू करने का नतीजा बहुत उत्साहजनक नहीं देखा गया। दुपहिया वाहनों के चलते भी वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी के आंकड़े दर्ज किए गए, इसलिए प्रस्ताव आया था कि उन पर भी यह फार्मूला लगाया जाना चाहिए। बार-बार कार पूल की अपील के बावजूद यह चलन में नहीं आ पाया है। फिर यह भी देखा गया कि सम-विषम फार्मूला लागू होने के दौरान गाड़ियों की बिक्री का आंकड़ा कुछ बढ़ गया था।

सरकार ने अभी तक ठीक से पता लगाने की कोशिश नहीं की है कि क्या कुछ लोग इससे पार पाने के लिए अतिरिक्त गाड़ियां खरीदने को प्रेरित हुए। दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर और इससे लोगों की सेहत पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव गहरी चिंता का विषय हैं। औद्योगिक इकाइयों, ट्रकों आदि पर अंकुश लगाने की कोशिशों के बावजूद दिल्ली की आबोहवा को निरापद कर पाना मुश्किल बना हुआ है। ऐसे में सरकार से तमाम पहलुओं का व्यावहारिक अध्ययन करने के बाद कोई कड़ा कदम उठाने की अपेक्षा की जाती है। प्रायोगिक तौर पर कुछ-कुछ समय बाद सिर्फ कारों पर नकेल कसना या महीने में एक दिन कार फ्री दिवस मनाना वायु प्रदूषण के प्रति ध्यानाकर्षण का कार्यक्रम तो हो सकता है, पर इससे कोई समाधान नहीं निकल सकता। दिल्ली सरकार को अब प्रयोग से आगे ेजाकर सार्वजनिक परिवहन में सुधार जैसे टिकाऊ उपायों के बारे में सोचना चाहिए।