बिहार में कुछ महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। मगर राजनीतिक दलों के बीच जनहित से जुड़े मुद्दों पर बात होने के बजाय राज्य फिलहाल जघन्य अपराधों के सिलसिले के लिए सुर्खियों में है। हैरानी की बात यह है कि एक समय ‘जंगल राज’ का हवाला देकर नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने राज्य की सत्ता हासिल की थी, तो उसकी पृष्ठभूमि में सबसे बड़ा कारण यही था कि उन्होंने आपराधिक घटनाओं के बेलगाम होने और उससे लोगों के असुरक्षित महसूस करने को ही मुख्य मुद्दा बनाया था। उसके बाद नीतीश कुमार पिछले करीब बीस वर्षों से राज्य की सत्ता पर लगातार काबिज हैं।
बिहार में बदलाव के लिए उन्होंने अपना एक सबसे अहम नारा यही दिया था कि वे राज्य में आपराधिक घटनाओं पर रोक लगाएंगे और आम लोगों की जिंदगी को सुरक्षित बनाएंगे। मगर इतने वर्षों के बाद भी अगर जमीनी हकीकत यह है कि अमूमन हर रोज हत्या जैसे जघन्य अपराध बेलगाम हो गए दिख रहे हैं, तो इसकी रोकथाम में नाकामी की जिम्मेदारी किसकी बनती है।
पटना, बेगूसराय और सारण में हुआ गोलीकांड
गौरतलब है कि पटना और सारण जिले में रविवार को हुई अलग-अलग घटनाओं में एक वकील और एक शिक्षक की गोली मार कर हत्या कर दी गई। साथ ही, पटना के पिपरा इलाके में एक स्वास्थ्य अधिकारी की भी हत्या कर दी गई। इसके अलावा, सोमवार को बेगूसराय में तीन लोगों पर गोलीबारी और एक हत्या की घटना सामने आई। ऐसा लगता है कि राज्य में अपराधी पूरी तरह बेखौफ और बेलगाम हो चुके हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
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वरना क्या वजह है कि हाल में पटना में एक बड़े व्यवसायी की हत्या की घटना के तूल पकड़ने के बावजूद राज्य की कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर कुछ भी ऐसा नहीं देखा जा रहा है, जिससे आपराधिक तत्त्वों के भीतर कानून का खौफ पैदा हो और वे किसी अपराध को अंजाम देने से हिचकें। उल्टे ऐसा लगता है कि कानून-व्यवस्था पर से राज्य सरकार की लगाम छूट चुकी है और अपराधी सरेआम अपनी मनमानी कर रहे हैं। सवाल है कि ऐसी स्थिति में राज्य की जनता को सरकार और अपराधों पर काबू पाने की उसकी क्षमता के बारे में क्या सोचना चाहिए?
बिहार में संगीन अपराधों का विचित्र सिलसिला आ रहा सामने
बिहार में सरकार की लाचारी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सब कुछ ठीक होने के तमाम दावों के बावजूद संगीन अपराधों का एक विचित्र सिलसिला सामने आ रहा है, जिसमें व्यापारी, शिक्षक, वकील जैसे अपेक्षया बेहतर स्थिति में माने जाने वाले लोगों को भी घोर असुरक्षा में जीना पड़ रहा है। ऐसे में आम लोगों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। राज्य अपराध रेकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकडो के मुताबिक, बिहार में जनवरी से जून के बीच हर महीने औसतन 229 लोगों की हत्या के साथ 1,376 मामले सिर्फ हत्या के दर्ज किए गए। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के मुताबिक भी बिहार लगातार जानलेवा हथियारों से जुड़े अपराधों के साथ-साथ हिंसक अपराधों के मामले में देश के शीर्ष पांच राज्यों में शामिल रहा है।
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अगर सरकार या पुलिस का यह मानना है कि पिछले कुछ समय से अवैध रूप से निर्मित या बिना वैध दस्तावेजों के आधार पर खरीदे गए आग्नेयास्त्र और गोला-बारूद की आसान उपलब्धता ने जघन्य अपराधों के ग्राफ में तेजी ला दी है, तो इसके लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है? राज्य सरकार क्या केवल सुशासन के हवा-हवाई दावों और लोकलुभावन वादों के बूते वहां की मौजूदा त्रासद स्थिति का सामना कर सकती है?