भारत और नेपाल के संबंध ऐतिहासिक तौर पर मजबूत रहे हैं। लेकिन वक्त के साथ बदलती दुनिया में जिस तरह की नई भू-राजनीतिक परिस्थितियां बन रही हैं, उसमें उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है और उसी मुताबिक दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दों को लेकर कई बार अस्पष्टता भी बनी। लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री की ताजा भारत यात्रा से एक बार फिर इन रिश्तों में पुराना दोस्ताना रंग दिखा है। इस दौरान जिस तरह सीमा विवाद सहित कुछ अन्य उलझे हुए मुद्दों को किनारे रख कर बाकी मसलों पर सहमति कायम करके साझेदारी का नया सफर शुरू करने की कोशिश दिखी है, उससे उम्मीद बंधती है कि सीमा से सटे पड़ोसी होने के नाते दोनों देश अब विश्व में बनते नए समीकरण को देख-समझ कर उसी मुताबिक अपने रिश्तों के नया आयाम देने की ओर बढ़ रहे हैं।
हालांकि पिछले कुछ साल छोड़ दिए जाएं तो भारत और नेपाल की मित्रता एक उदाहरण रही है। गौरतलब है कि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों में बातचीत के बाद मुख्य बात यह उभर कर सामने आई है कि सीमा विवाद सहित कुछ अन्य मुद्दों को भविष्य में विचार करने के लिए छोड़ कर दोस्ती को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
निश्चित रूप से यह वक्त का तकाजा समझ कर कूटनीतिक मोर्चे पर नए सिरे से विचार करके भविष्य को बेहतर करने की दिशा में बढ़े कदम हैं, जिसमें सभी देशों को यह ध्यान रखने की जरूरत होगी कि आने वाले वक्त में कैसी परिस्थितियां बनने वाली हैं और उसमें उनके नागरिकों के अधिकतम हित कैसे तय हों! इस लिहाज से देखें तो दोनों देशों ने नए सिरे से संबंधों को सद्भाव की बुनियाद पर मजबूती की ओर बढ़ाने का फैसला किया है।
एक ओर जहां भारत के प्रधानमंत्री ने भरोसा जताया कि दोनों देश अपने रिश्तों को हिमालय जितनी ऊंचाई देने के लिए काम करते रहेंगे, वहीं नेपाल के प्रधानमंत्री ने भी सदियों पुराने और बहुआयामी संबंधों को संप्रभु समानता, आपसी सम्मान, समझ और सहयोग के समय की कसौटी पर खरे उतरे सिद्धांतों के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता पर आधारित बताया। यह बेवजह नहीं है कि पिछले कुछ सालों में भारत और नेपाल के बीच आए
ठंडेपन के बाद अब सात समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें सीमा पार पेट्रोलियम पाइपलाइन का विस्तार, एकीकृत जांच चौकियों के विकास के अलावा पनबिजली में सहयोग बढ़ाने से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं। एक अहम सहमति इस बात पर बनी है कि संशोधित भारत-नेपाल संधि के जरिए यह प्रावधान किया गया है कि नेपाल के लोगों के लिए नए रेल मार्गों के साथ ही भारत की अंतरदेशीय जलमार्ग सुविधा का वहां के लोग प्रयोग कर सकें।
दरअसल, भारत की यह एक वाजिब चिंता रही है कि हाल के वर्षों में चीन ने जिस तरह सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण नेपाल पर अपना प्रभाव कायम करने की कोशिश की है, उससे नई समस्या खड़ी हो सकती है।
खासतौर पर इसलिए भी कि चीन का रवैया भारत के प्रति सकारात्मक नहीं है और वह छोटी-छोटी बातों पर भारत को परेशानी में डालने की कोशिश करता रहता है। भारत के सीमावर्ती इलाकों में उसकी अवांछित गतिविधियां अब छिपी नहीं हैं। इसके मद्देनजर नेपाल में उसकी दिलचस्पी की मंशा का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसलिए अब नेपाल के साथ भारत के संबंधों के नए आयाम खुल रहे हैं, तो यह भारत के लिए कूटनीतिक स्तर पर भी जरूरी पहल है। अब देखना नेपाल को है कि वह वहां के विशिष्ट समूह की रिपोर्ट और सीमा संबंधी कुछ सवालों पर क्या रुख अपनाता है और भारत के साथ संबंधों को किस स्वरूप में आगे बढ़ाता है।