मौसम की अपनी गति होती है। बरसात के साथ गर्मी या ठंड के अनुमानित समय में थोड़ा आगे-पीछे होना एक प्राकृतिक चक्र रहा है। इस वर्ष मानसून के बारे में अनुमान लगाया जा रहा था कि इसका आगमन समय से थोड़ा पहले हो सकता है। अब भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने यह जानकारी दी है कि इस वर्ष रविवार को मानसून पूरे देश में अनुमान के मुकाबले नौ दिन पहले आ गया है। सन 2020 के बाद यह पहला मौका है, जब मानसून पूरे देश में इतनी जल्दी आ गया।

इससे पहले इस बार भारत के दक्षिणी छोर पर केरल तक मानसून दस दिन पहले ही पहुंच गया था। हालांकि कुछ दिनों पहले से दिल्ली और देश के कुछ अन्य हिस्सों में घने बादल छा रहे थे, लेकिन बारिश न होने की वजह से मौसम में नमी और गरमी ने लोगों को थोड़ा परेशान कर दिया था। लेकिन दो दिन देरी से सही, दिल्ली के कई इलाकों में खासी बारिश होने के बाद आइएमडी ने रविवार को मानसून के आगमन की घोषणा की। इसके साथ ही तेज गर्मी और उमस से लोगों को राहत मिली।

भारत में साठ फीसद से ज्यादा खेती मानसून पर निर्भर

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की मानें तो इस वर्ष बारिश सामान्य से अधिक होगी। अपनी जरूरतों के लिए मानसून पर निर्भर देश के ज्यादातर इलाकों में बरसात पूर्वानुमानों के मुताबिक ही हो सकती है। जाहिर है, देश के जिन राज्यों में कृषि आमतौर पर बारिश के मौसम पर निर्भर है, उन इलाकों में भरपूर बारिश होने की संभावना है। गौरतलब है कि भारत में साठ फीसद से ज्यादा खेती मानसून पर निर्भर है। धान, मक्का, बाजरा, रागी, अरहर जैसी खरीफ की फसलें दक्षिण-पश्चिम मानसून पर ही निर्भर रहती हैं।

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अब मानसून के जल्दी आने से फसलों की बुआई भी थोड़ा पहले होने की उम्मीद की जा सकती है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि खरीफ की फसलें देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन के पचपन फीसद के बराबर हैं। इसके अलावा, लौटता मानसून भी गेहूं, चना, मटर, जौ वगैरह रबी फसलों के लिए काफी अहम होता है। यानी देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से मानसून और इस वर्ष इसके नौ दिन पहले आने की अहमियत को समझा सकता है।