महबूबा मुफ्ती के जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के साथ ही राज्य में करीब तीन महीने से चली आ रही अनिश्चितता समाप्त हो गई। संशय का दौर और पहले खत्म हो सकता था, पर यह लंबा खिंचा तो इसकी वजह महबूबा मुफ्ती की दुविधा थी। पीडीपी और भाजपा के गठजोड़ में पीडीपी के पास अधिक सीटें होने के कारण मुख्यमंत्री पद उसे मिला था। मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद नया मुख्यमंत्री तय करने की जिम्मेदारी पीडीपी की थी। महबूबा मुफ्ती पार्टी में इसकी स्वाभाविक दावेदार थीं, जो कि कुछ दिन पहले पार्टी के विधायक दल की नेता चुने जाने से आखिरकार साबित भी हुआ। लेकिन महबूबा काफी समय तक असमंजस में झूलती रहीं।

शुरू में तो उन्होंने यह कह कर अनिच्छा दिखाई कि अपने वालिद की मौत से वे गमजदा हैं, लिहाजा सरकार बनाने के बारे में सोच नहीं पा रही हैं। लेकिन गतिरोध खिंचता गया तो साफ लगने लगा कि उनकी परेशानी पारिवारिक ही नहीं, कुछ और भी है। दरअसल, उन्हें लग रहा था कि भाजपा से गठबंधन के कारण पीडीपी का जनाधार कमजोर हो रहा है। इसके अलावा, वे यह जताना चाहती थीं कि सरकार के गठन की गरज उन्हें नहीं, भाजपा को ज्यादा है। और इस तरह शायद वे गठबंधन के एजेंडे को नए सिरे से तय करना चाहती थीं। क्या ऐसा हो पाया? गठबंधन का गतिरोध तब टूटा जब कुछ दिन पहले महबूबा दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलीं। इस मुलाकात के बाद उन्होंने कहा था कि वे संतुष्ट हैं। पर नया क्या हासिल हुआ? न तो अफस्पा पर पुनर्विचार का आश्वासन मिला न कश्मीर के सभी आंतरिक पक्षों से वार्ता शुरू करने का। महबूबा ने राज्य में केंद्र की ऊर्जा परियोजनाओं को राज्य सरकार को सौंपने की मांग की थी। केंद्र ने इस पर खामोशी अख्तियार कर रखी है। फिर भी, महबूबा मुफ्ती देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर सरकार बनाने को राजी हो गर्इं।

गठबंधन के फार्मूले के मुताबिक उपमुख्यमंत्री पद फिर भाजपा को मिला है और इस बार भी पार्टी ने यह पद निर्मल सिंह को ही सौंपा है। मंत्रालयों का बंटवारा पहले की ही तरह है। अलबत्ता दो-तीन चेहरे जरूर बदल गए हैं। महबूबा लंबे समय से राजनीतिक परिदृश्य में हैं और उन्होंने जमीनी स्तर पर संगठन खड़ा करने से लेकर पार्टी का नेतृत्व करने तक अपनी राजनीतिक क्षमता का लोहा मनवाया है। पर प्रशासनिक जिम्मा वे पहली बार उठाने जा रही हैं। फिर, उनकी पार्टी और भाजपा के बीच वैचारिक असंगतियों के कारण भी उनकी राह आसान नहीं है। त्रिशंकु विधानसभा ने दोनों पार्टियों को अपने विरोधाभासों को दरकिनार कर साथ आने को मजबूर किया है। खुद मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पीडीपी और भाजपा के गठजोड़ को दो ध्रुवांतों का मिलन कहा था। पर वे कुछ मामलों में वे पीछे हटे तो उन्होंने भाजपा को भी कुछ मामलों में पीछे हटने को राजी किया था। अगर यह लचीलापन और आपसी समझ बनी रही तो गठबंधन या राज्य सरकार का दूसरा दौर सुचारु रूप से चल सकता है। महबूबा मुफ्ती के शपथ लेते ही जम्मू-कश्मीर ने एक इतिहास रचा है, वे राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं। साथ ही, वे देश की पहली मुसलिम महिला मुख्यमंत्री भी हैं। इतिहास रचने का एक और मौका दोनों पार्टियों के सामने है, वह है जम्मू और कश्मीर की खाई पाटने का।