आम राय यही है कि नाबालिगों को शराब की लत से दूर रखा जाना चाहिए। इस क्रम में देश भर में शराब खरीदने के लिए न्यूनतम उम्र निर्धारित की गई है, हालांकि किसी राज्य में इसके लिए पच्चीस वर्ष की उम्र निर्धारित है, तो किसी राज्य में इक्कीस। कम से कम अठारह वर्ष की सीमा हर जगह तय की गई है कि इससे कम उम्र के बच्चों को शराब नहीं बेची जाएगी। मगर हालत यह है कि कई बार इससे भी कम आयु के बच्चे शराब खरीदते दिख जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
शराब की दुकानों पर शायद ही कहीं इस बात की व्यवस्था होती है कि शराब खरीदने वाले की उम्र जांची जाए। इसी मसले पर एक स्वयंसेवी संगठन की याचिका में उठाए गए सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जिसमें शराब की दुकानों और अन्य विक्रय स्थलों पर उम्र की जांच के लिए एक प्रभावी नियमावली और एक सुदृढ़ नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है।
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दरअसल, शराब की बिक्री और उसका सेवन करने को लेकर नियम-कायदे तो बना दिए गए हैं, मगर उस पर अमल को लेकर गंभीरता शायद ही कहीं दिखती है। इतना तय है कि अगर शराब पीने की न्यूनतम आयु का निर्धारण किया गया है तो इसके पीछे यह धारणा काम करती है कि इससे कम उम्र में शराब के सेवन से सेहत को नुकसान पहुंचेगा। इस तरह की शर्तों के पीछे मुख्य भावना यह है कि बच्चों को शराब के दायरे से दूर रखा जाए।
सरेआम कानून को धता बताया जा रहा
विचित्र है कि इस पर अमल के लिए किसी तरह की नियमावली और नीति तय नहीं की गई है कि अगर दुकान पर कोई व्यक्ति शराब खरीदने गया है तो उसकी उम्र की जांच हो। नतीजतन, दुकानदारों को सिर्फ बेचने से मतलब होता है और शराब के शौकीन या लती बेहिचक खरीदते हैं, वे निर्धारित उम्र की शर्त पालन करते हों या नहीं। एक तरफ यह बच्चों या किशोरों में शराब की लत को बढ़ावा देता है या इसकी अनदेखी करता है, दूसरी ओर इस तरह सरेआम इससे संबंधित कानून को भी धता बताया जाता है।
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इसीलिए याचिका में सुझाव दिया गया है कि शराब बेचने वाले सभी स्थानों पर ऐसे लोगों की उम्र की जांच करने की व्यवस्था की जानी चाहिए जो तीस वर्ष से कम उम्र के लग रहे हों। इसके लिए सरकार की ओर से जारी आधार कार्ड, निर्वाचन कार्ड या अन्य पहचान प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा, पार्टी में बच्चों को शराब मुहैया कराने वाले आयोजकों की जिम्मेदारी तय करने और जुर्माना लगाने की भी सलाह दी गई है। विडंबना यह है कि चूंकि शराब की बिक्री सरकारों के लिए राजस्व का एक बड़ा जरिया है, इसलिए वे इससे संबंधित कई नियम-कायदों की अनदेखी करती हैं।
शराब घर तक पहुंचाए जाने का चलन
कई जगहों पर राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानों की शृंखला जैसी दिखती है। यहां तक कि मांग के आधार पर शराब घर तक पहुंचाए जाने का चलन बढ़ रहा है। आसान तरीके से शराब मिल जाना नई पीढ़ी के लिए उसकी ओर आकर्षित होने का एक बड़ा कारण है। सेहत पर असर और सड़क हादसों में इसकी भूमिका की वजह से पहले भी शराब के सेवन को नियंत्रित करने की बात कही जाती रही है। जरूरत इस बात की है कि सरकार इससे संबंधित एक स्पष्ट नीति और नियमावली तैयार कर उस पर अमल सुनिश्चित करे।