दिल्ली में आॅड-ईवन यानी सम-विषम के दूसरे चरण के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसकी सफलता के लिए यहां के नागरिकों को धन्यवाद जरूर दिया, लेकिन यह भी स्वीकार किया कि यह योजना वायु प्रदूषण का कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकती। दरअसल, दिल्ली में प्रदूषण कम करने के मकसद से जब जनवरी में पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार ने सड़कों पर सम-विषम योजना लागू की, तभी इसके विभिन्न पहलुओं को लेकर कई सवाल उठे थे। सड़कों पर रोजाना उतरने वाली कारों की तादाद में कमी के बावजूद प्रदूषण के स्तर में कोई खास फर्क नहीं पाया गया।
तब भी दिल्ली सरकार की ओर से इसे प्रदूषण कम करने का एक बेहतर उपाय बताया जाता रहा। इसमें संदेह नहीं कि दिल्ली में प्रदूषण की समस्या बहुत गंभीर रूप ले चुकी है। इस पर काबू पाने के लिए अगर ठोस और दीर्घकालिक उपाय नहीं किए गए तो यहां रहना बहुत खतरों से भरा होगा। लेकिन दिल्ली सरकार को अगर लगता है कि वह तीन-चार महीनों में एक बार पंद्रह दिनों की खातिर सिर्फ कारों के लिए सम-विषम फार्मूला लागू कर प्रदूषण पर काबू पा लेगी, तो यह ध्यानाकर्षण का एक उपाय जरूर हो सकता है, लेकिन वास्तव में इससे कोई ठोस उपलब्धि सामने नहीं आ सकती।
दिल्ली में प्रदूषण के लिए वाहनों के साथ-साथ कई और कारक भी जिम्मेदार हैं। लेकिन दिल्ली सरकार की नजर में समाधान यह है कि कारों की तादाद नियंत्रित कर दी जाए। जबकि यहां लाखों की तादाद में मोटर साइकिलों के अलावा, दिल्ली से बाहर की बसें, ट्रक या डीजल-चालित अन्य वाहन और दूसरी वजहें भी प्रदूषण में इजाफे के लिए जिम्मेदार हैं। सही है कि दिल्ली की सड़कों पर कारों की भारी तादाद एक समस्या बनी हुई है। सम-विषम जैसी योजना एक नियमित उपाय बनती है तो क्या गारंटी है कि बहुत-से लोग अतिरिक्त कार नहीं खरीदेंगे।
अगर यह एक प्रवृत्ति बनती है तो क्या इसके असर का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता? बहरहाल, सम-विषम के दौरान एक अन्य सुविधा जरूर हुई। सड़कों पर वाहनों की तादाद में कमी की वजह से तमाम गाड़ियों की आवाजाही आसान रही और कहीं भी आने-जाने में अपेक्षया कम वक्त लगने की सहूलियत सबने महसूस की। प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस और स्थायी उपायों के अलावा दिल्ली की एक सबसे बड़ी जरूरत यही है। लेकिन अगर इसके लिए भी सम-विषम जैसी योजना को आधार बनाया जाता है तो सार्वजनिक परिवहन को पूरी तरह दुरुस्त करना सबसे पहली जरूरत होगी।
लेकिन सामान्य दिनों में अगर तिपहिया या टैक्सियों को छोड़ दें तो सड़कों पर बसों की क्या हालत रहती है, यह किसी से छिपा नहीं है। व्यस्त समय में सवारियों की तादाद के मुकाबले बसों की संख्या से लेकर सड़क जाम की हालत ऐसी होती है कि लोग कई बार इसी वजह से सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से हिचकते हैं। इसलिए जरूरत एक ऐसी व्यापक नीति की है जिसमें नागरिकों के लिए कोई असुविधा खड़ी करने के बजाय नई तकनीकी और सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। वरना सम-विषम जैसी पहलकदमी फौरी तौर पर ध्यान आकृष्ट करने की एक कवायद भर बन कर रह जाएगी।