कश्मीर के उड़ी में सैन्य ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जब पूरे देश में रोष है और बहुत सारे लोग इसे युद्ध की स्थिति के रूप में देख रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल के अपने भाषण से स्पष्ट कर दिया कि भारत का दिल बड़ा है और वह युद्ध के पक्ष में नहीं है। प्रधानमंत्री ने अपने गुस्से को पीते हुए पाकिस्तानी अवाम से अपील की कि वह अपने हुक्मरान से पूछे कि वे इस तरह आतंकवाद को बढ़ावा देकर क्या हासिल करना चाहते हैं। पाकिस्तान के आम लोगों की जरूरतों, उनकी तकलीफों की तरफ ध्यान देने के बजाय अस्थिरता का माहौल बनाए रख कर वहां की हुकूमत को कुछ नहीं मिलने वाला। अभी तक जब भी पाकिस्तान की तरफ से कोई आतंकी हमला हुआ, भारत सरकार पाकिस्तान के हुक्मरान, वहां की सेना को सीधा निशाना बनाती रही है।
यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी अवाम का आह्वान किया। उड़ी हमले के बाद सबका ध्यान प्रधानमंत्री की तरफ लगा हुआ था कि वे इस घटना पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। इस बीच लगातार रक्षा मंत्रालय, सुरक्षा सलाहकार और सेना प्रमुखों के बीच विचार-विमर्श चले। पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति पर विचार किया गया। इसमें कई तल्ख बयान भी आए। इसलिए प्रधानमंत्री के बयान पर सबकी नजर लगी हुई थी। केरल में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के प्रति जो रुख जाहिर किया उससे उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने भी भारत के उदारवादी रवैये का इजहार किया। इससे यही संदेश गया है कि भारत युद्ध के पक्ष में नहीं है।
हालांकि उड़ी हमले के बाद जो लोग भारत की तरफ से पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिए जाने के पक्ष में थे उन्हें प्रधानमंत्री के ताजा बयान से निराशा हुई होगी। पर इसे पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति के रूप में देखें तो इस बयान का संदेश दूर तक जाता है। प्रधानमंत्री ने एक बार फिर बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित का उल्लेख किया। पंद्रह अगस्त के भाषण में जब उन्होंने बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकारों के हनन का जिक्र किया था तो उसका गंभीर असर हुआ। बागी बलूच नेताओं ने खुल कर भारत की सराहना की और पाक हुक्मरानों पर हमले किए थे। पाकिस्तान भी असहज हो उठा था। छिपी बात नहीं है कि पाकिस्तान की अवाम वहां के हुक्मरानों, कट्टरपंथी नेताओं और सेना की ज्यादतियों से परेशान है।
सब जानते हैं कि पाकिस्तान के हुक्मरान भारत के साथ तनावपूर्ण माहौल बनाए रख कर अपने यहां के लोगों का ध्यान गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से भटकाए रखना चाहते हैं। ऐसे में अगर वहां के लोग पाकिस्तान सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने लगें, मांग करने लगें कि उन्हें जंग नहीं, तरक्की चाहिए, तो पाकिस्तानी हुक्मरान की नींद खराब हो सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय भी भारत-पाक सीमा के कुछ रास्ते खोल कर यही प्रयास किया गया था कि दोनों मुल्कों के लोग आपस में मिलें-जुलें और जानें कि सीमा पर तनाव के माहौल से आखिरकार किसका नुकसान हो रहा है। पर पाकिस्तान को वह रास नहीं आया और आवाजाही रुक गई। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने पाकिस्तानी हुकूमत की असलियत खुल चुकी है, अब जरूरत उसे अपने ही घर में घेरने की है। प्रधानमंत्री ने इसी रणनीति के तहत, पूरे संयम के साथ केरल में बयान दिया।