ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेजा मे की यूरोप के बाहर यह पहली द्विपक्षीय यात्रा थी। यह संयोग भी हो सकता है। पर खुद ब्रिटेन में उनकी इस यात्रा को जिस तरह बहुत सारी उम्मीदों से जोड़ कर देखा गया उससे यही लगता है कि यह निरा संयोग नहीं रहा होगा। दरअसल, मे की इस यात्रा को यूरोपीय संघ से अलग होने के निर्णय के बाद ब्रिटेन की भविष्य की तैयारियों से अलग करके नहीं देखा जा सकता। ब्रिटेन अभी औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से अलग नहीं हुआ है, इसमें करीब दो साल का वक्त लगेगा। पर दो साल बाद के हालात के लिए उसने कमर कसना शुरू कर दिया है।
ब्रिटेन में यह आम सोच है कि वैसी परिस्थितियों में आर्थिक अवसरों में वृद्धि के लिए यह जरूरी कि चीन, भारत और ब्राजील जैसे देशों के साथ कारोबारी रिश्ते बढ़ाए जाएं। यूरोपीय संघ से बाहर नई संभावनाएं टटोलने के क्रम में ब्रिटेन की नजर आस्ट्रेलिया और अमेरिका पर पहले से ही है। जहां तक भारत की बात है, इसके विशाल बाजार में ब्रिटेन अपने लिए काफी नए अवसर देख रहा है। मे की इस यात्रा के साथ-साथ तकनीकी शिखर बैठक का आयोजन भी इसकी गवाही देता है। दूसरी ओर, भारत के लिए भी ब्रिटेन की अहमियत जाहिर है। वह यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। इसके अलावा, बाकी यूरोप में भारत के लिए निर्यात बढ़ाने में मददगार भी। इसलिए 2014 में ही प्रधानमंत्री मोदी ने ऊर्जा, रक्षा और चिकित्सा समेत अनेक क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाई थी। पर ब्रिटेन की सख्त वीजा तथा आव्रजन नीति के कारण वह पहल परवान नहीं चढ़ पाई। इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि मे से हुई वार्ता में मोदी ने ब्रिटेन की वीजा नीति के कारण आने वाली मुश्किलों का जिक्र किया।
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मे ने कारोबारियों के लिए तो वीजा नीति को आसान बनाने का भरोसा दिलाया है, पर भारतीय छात्रों की बाबत उन्होंने नरमी का कोई संकेत नहीं दिया। असल में ब्रिटेन की शिकायत है कि अध्ययन-वीजा पर वहां आने वाले बहुत-से लोग वीजा की अवधि पूरी होने के बाद भी वहां से जाना नहीं चाहते। द्विपक्षीय वार्ता में आपसी कारोबार बढ़ाने के अलावा एक और अहम मुद््दा प्रत्यर्पण का था। भारत ने जहां शराब कारोबारी विजय माल्या, आइपीएल के पूर्व प्रमुख ललित मोदी और अगस्ता-वेस्टलैंड सौदे के आरोपी क्रिस्टीन मिशेल समेत साठ वांछितों की सूची प्रत्यर्पण के लिए सौंपी हैं, वहीं ब्रिटेन ने भी सत्रह लोगों की सूची भारत को दी है जो वहां वांछित हैं।
आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ सहयोग का इरादा जताते हुए ब्रिटेन ने दो टूक कहा है कि किसी आतंकवादी को शहीद कह कर महिमामंडित नहीं किया जाना चाहिए। समझा जा सकता है कि इशारा बुरहान वानी की तरफ होगा, जिसे पाकिस्तान ने ‘शहीद’ घोषित किया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की दावेदारी और एनएसजी की सदस्यता के मुद््दों पर ब्रिटेन पहले से ही भारत का समर्थन करता आ रहा है। आपसी व्यापार को एक महत्त्वाकांक्षी मुकाम तक पहुंचाने के दोनों देशों के इरादे की झलक एफटीए यानी मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बनी रजामंदी से मिल जाती है। अलबत्ता जब तक ब्रिटेन औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से बाहर नहीं आ जाता, इस तरह की सहमति सैद्धांतिक स्तर पर ही रहेगी। पर इससे दो साल बाद की नई संभावनाओं का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है।