जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर काबू पाने के लिए हर स्तर पर किए गए उपायों के बावजूद आज भी वहां आए दिन जिस तरह के आतंकी घुसपैठ और हमले होते हैं, उससे यही लगता है कि वहां इस समस्या की जड़ें गहरी बनी हुई हैं। वरना क्या वजह है कि हर कुछ दिनों बाद सुरक्षा बलों की आतंकियों के साथ मुठभेड़ होती रहती है और उसमें कभी कुछ आतंकी मारे जाते हैं, तो कई बार हमारे जवान भी शहीद हो जाते हैं। मगर इस स्थिति में एक तरह की निरंतरता बनी हुई है, जिसकी बड़ी कीमत देश को चुकानी पड़ रही है।
गौरतलब है कि जम्मू के अखनूर सेक्टर में नियंत्रण रेखा यानी एलओसी पर आतंकियों ने घुसपैठ करने की कोशिश की। मगर सतर्क जवानों ने शुक्रवार देर रात केरी भट्टल इलाके में भारी हथियारों से लैस आतंकवादियों के एक समूह को देखा और उन्हें चुनौती दी। इसके बाद आतंकियों ने भीषण गोलीबारी शुरू कर दी। हालांकि सुरक्षा बलों ने आतंकियों की भारत में घुसपैठ की कोशिश नाकाम कर दी, लेकिन यह दुख की बात है कि इस मुठभेड़ में भारतीय सुरक्षा बलों के एक सूबेदार घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
मुठभेड़ में मारे गए तीन आतंकवादी
विडंबना यह है कि जम्मू-कश्मीर में तमाम सख्ती के बावजूद पिछले कुछ समय से एक बार फिर आतंकवाद एक जटिल रूप में उभर रहा है। हर कुछ दिनों बाद आतंकी कभी राज्य के अलग-अलग इलाकों में आम नागरिकों से लेकर सुरक्षा बलों की शिविरों तक पर हमले करते हैं, तो कभी सीमा पार के इलाकों से भारतीय क्षेत्र में घुसने की कोशिश करते हैं। बाहरी प्रदेशों से आकर वहां गुजारा करने वाले प्रवासी मजदूरों और अन्य स्थानीय लोगों पर लक्षित हमले करना भी आतंकियों की एक नई रणनीति है।
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शनिवार को यह खबर आई कि किश्तवाड़ जिले में सुरक्षा बलों की ओर से चलाए गए एक अभियान के दौरान हुई मुठभेड़ में तीन आतंकवादी मारे गए। इस तरह की हर घटना के बाद क्षेत्र से आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प दोहराया जाता है, मगर यह भी सच है कि पिछले काफी समय से इस तरह के संकल्पों और उपायों के बाद भी हालत यह है कि सुरक्षा बलों का सामना आतंकियों से होता है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि घुसपैठ की ताजा घटना भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में सीमा प्रबंधन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए ब्रिगेड कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग के दो दिन बाद हुई है। हाल में पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का भी उल्लंघन किया गया।
जम्मू-कश्मीर में आतंकी अपने लिए खुला मैदान नहीं
ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि सरकार और सुरक्षा बलों की ओर आतंकवाद का सामना करने के मामले में क्या किसी अन्य उपाय की जरूरत है! इसमें कोई दोराय नहीं है कि आतंकवादियों का सामना करने और उन पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बलों की ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। यही वजह है कि आज जम्मू-कश्मीर में आतंकी अपने लिए खुला मैदान नहीं पाते हैं।
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जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होने के बाद उम्मीद की गई थी कि नई सरकार आतंकवाद के खात्मे के लिए जमीनी स्तर पर कुछ ऐसे कदम उठाएगी, जिससे आतंकियों की पकड़ कमजोर हो। अब स्थानीय लोग भी इस समस्या से पार पाने के लिए खड़े हो रहे हैं और आतंकियों को उनका समर्थन मिलना तेजी से कम हो रहा है। फिर भी अपनी उपस्थिति का संदेश देने के लिए आतंकी अक्सर हमले करते रहते हैं तो इससे यही पता चलता है कि राज्य में अभी इस समस्या को खत्म करने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है।