जम्मू-कश्मीर में लंबे समय के बाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुनाव कराए गए और वहां की जनता की चुनी हुई सरकार सत्ता में आई। यह उम्मीद की गई कि वहां अब लोकतंत्र की नई बयार बहेगी और स्थानीय लोगों को अपनी अन्य समस्याओं के साथ सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद से राहत मिलने का रास्ता खुलेगा। मगर जम्मू-कश्मीर में सरकार के गठन के बाद आतंकवादी संगठनों ने जिस तरह सुनियोजित तरीके से लगातार हमला करना शुरू कर दिया है, उससे ऐसा लगता है कि इन हमलों के जरिए वे यह संदेश देना चाह रहे हैं कि वहां सरकार का स्वरूप चाहे जो हो, मगर आतंकवादी उसके सामने चुनौती खड़ी करेंगे। यों प्रदेश में आतंकी हमले कभी कम कभी ज्यादा के स्वरूप में होते रहे हैं, लेकिन हाल में लगातार लक्ष्य बना कर हत्या करने से लेकर सुरक्षा बलों पर हमले जैसी कई घटनाएं सामने आईं। इससे साफ लगता है कि आतंकवादी समूह अब हताशा के गर्त में गहरे डूब कर बेलगाम हो रहे हैं।
हाल ही में एक के बाद एक कई हमले किए गए
गौरतलब है कि गुरुवार को सेना के एक वाहन पर आतंकवादियों ने घात लगा कर हमला किया, जिसमें दो जवान शहीद हो गए और उस टुकड़ी के साथ कुली का काम करने वाले दो अन्य लोगों की भी जान चली गई। कई लोगों को बुरी तरह घायल अवस्था में अस्पतालों में दाखिल कराया गया। दूसरी ओर, त्राल इलाके में एक प्रवासी मजदूर पर भी गोलीबारी की गई, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गया। इससे पहले हाल ही में 20 अक्तूबर को गांदरबल और 18 अक्तूबर को शोपियां में आतंकियों ने लक्षित हमले करके सात लोगों की हत्या कर दी थी।
जम्मू-कश्मीर में एक चुनी हुई सरकार के काम करना शुरू करने के बाद हाल के कुछ दिनों के दौरान आतंकवादियों ने जिस तरह लगातार लक्ष्य बना कर प्रवासी मजदूरों के साथ-साथ वहां के स्थानीय लोगों और सुरक्षा बलों की हत्या करना तेज कर दिया हैं, उससे एक अलग आशंका खड़ी होती है। आतंकी संगठनों के हमले में सुरक्षा बलों की शहादत हो रही है और प्रवासी मजदूरों की जान जा रही। ऐसा करके शायद यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि प्रदेश आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित है और वहां के निवासी हमेशा जोखिम में हैं।
हैरानी की बात यह है कि ये उन्हीं अलगाववादी संगठनों से जुड़े लोग हैं, जो वहां की आबादी के हित में लड़ाई लड़ने का दावा करते रहते हैं और स्थानीय लोगों को बरगलाने की कोशिश भी करते हैं। सवाल है कि आए दिन सुरक्षा बलों के शिविरों से लेकर अन्य राज्यों से रोजी-रोटी की तलाश में पहुंचे लोगों की हत्या करके उनका मकसद कैसे पूरा हो जाएगा या वे वहां किस तरह का भविष्य बनाएंगे!
हालांकि यह साफ है कि कश्मीर के इलाके में जैसे-जैसे उनकी जड़ कमजोर हो रही है, स्थानीय आबादी के बीच आतंकियों की जगह खत्म हो रही है और लोकतंत्र के प्रति समर्थन तेजी से बढ़ रहा है, वैसे-वैसे आतंकवादी संगठनों के बीच हताशा गहरा रही है। यह चुनावों के दौरान भी साफ दिखा कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी राजनीति के असर या आतंकवाद के डर को धता बता कर आम लोगों ने बढ़-चढ़ कर मतदान किया और अपनी पसंद की सरकार बनाई। अब लोगों को यह भी उम्मीद है कि नई सरकार आतंक के माहौल से भी उन्हें छुटकारा दिलाएगी। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि केंद्र और जम्मू-कश्मीर की सरकार सुरक्षा बलों के साथ उचित तालमेल बना कर प्रदेश में आतंकी तत्त्वों से निपटने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना और नई रणनीति पर काम करे।
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