जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने संबंधी केंद्र सरकार के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने उचित करार दिया है। अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने का फैसला युद्ध जैसी स्थिति में तदर्थ उपाय के रूप में किया गया था। वह स्थायी व्यवस्था नहीं थी। उसे समाप्त करने का अधिकार राष्ट्रपति को था। हालांकि यह फैसला जम्मू-कश्मीर की सियासत में सक्रिय राजनीतिक दलों और कुछ अन्य विपक्षी दलों को रास नहीं आया है। मगर कर्ण सिंह ने इस फैसले का स्वागत किया और सभी राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे इस फैसले को स्वीकार कर लें।

जो राजनीतिक दल स्वीकार नहीं कर रहे हैं, देर-सवेर उन्हें भी मानना पडे़गा

कर्ण सिंह राजा हरि सिंह के बेटे हैं, जिनके शासन में जम्मू-कश्मीर का भारत गणराज्य में विलय हुआ और उसे अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा दिया गया था। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से इस बात पर मुहर लग गई है कि केंद्र सरकार ने कोई असंवैधानिक फैसला नहीं किया। इस तरह जो राजनीतिक दल इस फैसले पर नाखुशी जाहिर कर रहे हैं, उन्हें भी देर-सवेर इसे स्वीकार करना ही पड़ेगा। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर को भारत के दूसरे राज्यों से अलग दर्जा नहीं दिया जा सकता।

सियासी मुद्दा बना देने से धारा-370 को समाप्त करने में तमाम अड़चने आईं

हालांकि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला बहुत पहले हो जाना चाहिए था, मगर इसे एक सियासी मुद्दा बना दिया गया, जिसके चलते इसकी उलझनें बढ़ती गईं। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस अनुच्छेद के चलते ही अलगाववादी ताकतों को भी अपनी गोटियां बिछाने और पाकिस्तान के साथ नजदीकी बनाए रखने में मदद मिली थी। फिर जब भाजपा ने इस अनुच्छेद को समाप्त करने की मांग को अपने राजनीतिक एजंडे में शामिल कर लिया, तो दूसरे राजनीतिक दलों ने उसके विरोध में इसे कायम रखने की राजनीति शुरू कर दी थी। तर्क दिए जाने लगे कि जब पूर्वोत्तर के राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया है, तो जम्मू-कश्मीर को देने में क्या हर्ज है।

मगर इस तर्क में यह फर्क भुला दिया जाता रहा कि जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जा ठीक उसी प्रकृति का नहीं था, जो पूर्वोत्तर के राज्यों का है। निस्संदेह अनुच्छेद 370 समाप्त होने से जम्मू-कश्मीर भी देश की मुख्यधारा से जुड़ गया है और वहां सक्रिय अलगाववादी ताकतें कमजोर हुई हैं। इससे वहां विकास और नए रोजगार सृजन की संभावनाएं भी विस्तृत हुई हैं। इसीलिए स्थानीय लोगों में इसे लेकर वैसा विरोध नहीं दिखा, जैसा सियासी दलों की ओर से दिखता रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर को जल्दी राज्य का दर्जा वापस देने और अगले साल सितंबर तक चुनाव कराने की प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए। केंद्र इन दोनों बातों के लिए पहले से तैयार है।

पिछले हफ्ते ही जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को संसद में मंजूरी मिल गई। सरकार बार-बार दोहराती रही है और इस फैसले के बाद भी कहा है कि वह जल्दी ही राज्य का दर्जा वापस करेगी। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद उम्मीद जगी है कि इस दिशा में तेजी से प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से लोकतंत्र बाधित है, वहां चुनाव होने और उसे राज्य का दर्जा मिलने से स्थितियों में तेजी से बदलाव नजर आना शुरू होगा और वहां के लोगों में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति भरोसा बढ़ाने में कामयाबी मिलेगी। स्वाभाविक ही इस तरह चरमपंथी गतिविधियों पर भी नकेल कसी जा सकेगी।