यह शिकायत अक्सर दुहराई जाती है कि हमारे देश के शैक्षणिक संस्थान दुनिया के उत्कृष्ट संस्थानों के बीच जगह बनाने में सफल नहीं हो पाते। मगर इस बार के क्यूएस विश्व सांस्थानिक मूल्यांकन और श्रेणीकरण में वह शिकायत काफी हद तक दूर हो गई है। पढ़ाई-लिखाई के मामले में दुनिया के उत्कृष्ट संस्थानों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू को बीसवें स्थान पर रखा गया है।

उसके बाद भारतीय प्रबंधन संस्थान की अहमदाबाद, कोलकाता और बंगलुरु शाखाओं को क्रमश: पच्चीसवां और पचासवां स्थान मिला है। जेएनयू का दुनिया के बीस बेहतरीन संस्थानों में शुमार होना इसलिए भी संतोष और सम्मान की बात है कि यह संस्थान पिछले कुछ वर्षों से लगातार दूसरी वजहों से ज्यादा चर्चा में बना रहा है। वह विद्यार्थी संगठनों के बीच हिंसक टकराव, प्रशासन की ज्यादतियों, संकीर्ण नजरिए, भेदभावपूर्ण व्यवहार के आरोपों आदि के चलते अधिक सुर्खियां बटोरता रहा है। इतना कुछ होने के बावजूद वहां पढ़ाई-लिखाई का स्तर ऊंचा बना हुआ है, यह उल्लेखनीय बात है।

किसी भी शैक्षणिक संस्थान की प्रतिष्ठा इस बात से बनती है कि वह अपने विद्यार्थियों को कितने स्वतंत्र और तार्किक ढंग से सोचने, प्रतिक्रिया देने और नवोन्मेष के अवसर उपलब्ध कराता है। जेएनयू की स्थापना ही शोध और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की गई थी। उसके पाठ्यक्रम और पढ़ाई-लिखाई, परीक्षण आदि का तरीका इस तरह बनाया गया कि जिससे विद्यार्थियों में तार्किक क्षमता और अनुसंधान की प्रवृत्ति विकसित हो सके।

इस मामले में उसका प्रदर्शन निराश करने वाला कभी नहीं देखा गया। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह शैक्षणिक संस्थानों पर राजनीतिक वर्चस्व की कोशिशें बढ़ी हैं, उसमें अनेक संस्थानों की पढ़ाई-लिखाई के माहौल पर बुरा असर पड़ा है। जेएनयू पर भी इसकी छाया स्पष्ट देखी जा रही थी। मगर वहां के विद्यार्थियों और अकादेमिक लोगों ने तमाम उथल-पुथल के बीच भी विश्वविद्यालय के असल उद्देश्य को धूमिल नहीं होने दिया है, तो निस्संदेह इससे उसकी साख और बढ़ी है।