आतंकवाद के मसले पर समूची दुनिया में एक राय देखी जाती है कि जब तक इसके खिलाफ संयुक्त मोर्चा नहीं खोला जाएगा, इस पर पूरी तरह काबू पाना संभव नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात की अपेक्षा और मांग की जाती है कि किसी भी देश या समूह को इस मामले में दोहरा रवैया नहीं अपनाना चाहिए। मगर आतंकवाद की समस्या से उपजी फिक्र तब बेमानी हो जाती है जब क्षेत्रीय सहयोग के लिए गठित देशों के किसी समूह में आतंक का सामना करने को लेकर दोहरे पैमाने अपनाए जाते हैं।
गौरतलब है कि चीन के किंगदाओ में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के सम्मेलन में जो साझा बयान तैयार किया गया, उसमें बलूचिस्तान का उल्लेख तो किया गया, लेकिन पहलगाम का जिक्र नहीं किया गया। हालांकि पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले और उसकी प्रकृति को सभी देश आतंकवाद का एक क्रूर चेहरा ही मानते हैं और उसके खिलाफ अभियान चलाने को लेकर प्रतिबद्धता जताते रहते हैं। लेकिन विचित्र है कि एससीओ की बैठक में आतंकवाद से लड़ाई के संदर्भ में पहलगाम हमले को दर्ज करना जरूरी नहीं समझा गया।
सम्मेलन बिना संयुक्त बयान जारी किए ही समाप्त हो गया
इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि इस बैठक में तैयार संयुक्त बयान पर भारत ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और साफतौर पर कहा कि यह बयान आतंकवाद के खिलाफ भारत के मजबूत रुख को नहीं दिखाता। इसके बाद यह सम्मेलन बिना संयुक्त बयान जारी किए ही समाप्त हो गया। यह जगजाहिर हकीकत रही है कि भारत में आतंकवाद की समस्या को जटिल बनाने में पाकिस्तान ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।
इस तथ्य को दुनिया के ज्यादातर देश भली-भांति जानते हैं। खुद चीन के बेजिंग में कुछ वर्ष पहले हुए ब्रिक्स देशों के सम्मेलन के घोषणापत्र में इस तथ्य को शामिल किया गया था कि कई बड़े आतंकवादी संगठन पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं। फिर पहलगाम में पर्यटकों पर बर्बर हमलों में भी पाकिस्तान से आए आतंकियों का हाथ होने की बात सामने आई थी। इसके बावजूद एससीओ सम्मेलन के संयुक्त बयान में पहलगाम हमले का जिक्र नहीं किया जाना क्या दर्शाता है?
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सवाल है कि इस सम्मेलन में क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए संगठन के सदस्य देश हिस्सा ले रहे हैं, तो भारत में आतंकवाद पर उनके दोहरे पैमाने दुनिया के सामने इसके खिलाफ लड़ाई का कैसा रास्ता तैयार करेंगे। वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान आतंकवाद को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शह देने की अघोषित नीति पर काम करता है और अपनी सीमा में आतंकवादियों को पनाह देता रहा है! भारत में घुसपैठ से लेकर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और आतंकी हमलों का सिरा कहां से जुड़ा होता है, यह छिपा नहीं है।
विडंबना यह है कि इसके बावजूद चीन आमतौर पर पाकिस्तान के हक में खड़ा दिखता रहा है। एससीओ की बैठक के संयुक्त बयान में भी पहलगाम को शामिल न कर बलूचिस्तान का जिक्र करने की कोशिश क्या चीन का पाकिस्तान को स्पष्ट समर्थन नहीं है? आतंकवाद पर ऐसे दोहरे पैमाने के साथ इसके खिलाफ किस तरह की लड़ाई का दावा किया जा सकता है? इस संदर्भ में भारत ने उचित ही एससीओ के देशों, खासतौर पर चीन और पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंकवाद के मुद्दे पर वह किसी के सामने झुकने वाला नहीं है।