कश्मीर मसले समेत पाकिस्तान से जुड़े अन्य मुद्दों पर भारत का रुख हमेशा से द्विपक्षीय बातचीत पर केंद्रित रहा है। किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को भारत ने कभी स्वीकार नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र और कुछ अन्य देशों की ओर से कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की पेशकश की जाती रही है, लेकिन भारत ने उन्हें सिरे से खारिज कर दिया। पिछले दिनों पहलगाम आतंकी हमले के बाद ‘आपरेशन सिंदूर’ से सहमे पाकिस्तान ने भारत पर हमले का नाकाम प्रयास किया था। मगर, इससे पहले कि कार्रवाई तेज होती, दोनों देशों की सहमति से संघर्ष विराम की घोषणा कर दी गई।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई मौकों पर यह दावा किया कि अमेरिका की मध्यस्थता की बदौलत ही भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम हो पाया है। भारत ने इस दावे को तत्काल खारिज कर दिया था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप से फोन पर बातचीत में भी स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान के आग्रह पर ही भारत ने संघर्ष विराम पर सहमति जताई थी। इसमें अमेरिका की कोई भूमिका नहीं है।

दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की सबसे पहले घोषणा डोनाल्ड ट्रंप ने दस मई को सोशल मीडिया के जरिए की थी। उन्होंने यह दावा भी किया था कि संघर्ष रोकने पर सहमत न होने पर उन्होंने दोनों देशों के साथ व्यापार रोकने की चेतावनी दी थी। इसके बाद ट्रंप ने कई बार इस दावे को दोहराया कि अमेरिका ने ही दोनों देशों को संघर्ष विराम के लिए राजी किया। हालांकि, ट्रंप के दावे से पैदा हुई भ्रम की स्थिति को दूर करने के लिए सरकार ने कई दफा स्पष्ट किया कि इसमें अमेरिका की कोई भूमिका नहीं है।

अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनाडा में जी-7 देशों के सम्मेलन में भाग लेने गए थे, जहां डोनाल्ड ट्रंप भी मौजूद थे। मगर, इस दौरान दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच सम्मेलन से इतर बातचीत नहीं हो पाई। प्रधानमंत्री ने बीते मंगलवार को ट्रंप से फोन पर बातचीत की। विदेश सचिव विक्रम मिसरी के मुताबिक, इस दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच पिछले दिनों हुए संघर्ष पर भी बात हुई और प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा कि भारत और पाकिस्तान ने बिना किसी मध्यस्थता के अपने शीर्ष सैन्य अधिकारियों के बीच सीधी बातचीत के बाद सैन्य कार्रवाई रोकी थी।

मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि भारत ने किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की है और न कभी स्वीकार करेगा। यह भी साफ किया चुका है कि अब आतंकवाद को छद्म युद्ध के रूप में नहीं, बल्कि एक युद्ध के ही रूप में देखा जाएगा। इसमें दोराय नहीं है कि आपरेशन सिंदूर के तहत कार्रवाई नपी-तुली, सटीक तथा तनाव को और बढ़ावा नहीं देने वाली थी। भारत का यह रुख निस्संदेह पाकिस्तान के लिए भी एक कड़ा संदेश है कि अगर वह द्विपक्षीय मसलों में किसी तीसरे पक्ष को बीच में लाने का प्रयास करेगा, तो उसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।