सीमा विवाद को सुलझाने के लिए चल रही कवायद के जरिए भारत-चीन संबंधों ने नया आयाम हासिल किया है। दोनों देश लगभग पांच साल के अंतराल के बाद सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधियों की बैठक जल्द बुलाने वाले हैं। साथ ही, दोनों देशों में सीधी उड़ान बहाल करने और मानसरोवर तीर्थयात्रा दोबारा शुरू करने को लेकर सहमति बन रही है। सीमावर्ती क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी से शांति और सौहार्द बनाए रखने में मदद मिली है और अब भरोसा बहाल करने के आगे के कदम उठाए जा रहे हैं। सीमा विवाद के अलावा दोनों देशों के बीच जो मुद्दे अरसे से लंबित रहे हैं- मसलन, सीमावर्ती नदियों के आंकड़े साझा करने समेत आपसी सहयोग बढ़ाने के तमाम विषयों पर बातचीत शुरू की गई है और प्रगति संतोषजनक है।
यूक्रेन से युद्ध को ध्यान रखकर रूस ने कराई मध्यस्थता
असल में चीन और भारत के बीच तनावपूर्ण रिश्तों का असर रूस और दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर भी पड़ रहा था। रूस-यूक्रेन संघर्ष लगातार बना हुआ है, उसमें रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों को देखते हुए भारत से उसके मजबूत रिश्ते अहमियत रखते हैं। चीन से भारत की तनातनी के कारण यह समीकरण कारगर नहीं हो पा रहा था। माना जा रहा है कि इसी वजह से रूस ने पहल की और भारत-चीन के रिश्तों में आई खटास दूर होनी शुरू हुई। अमेरिका इस तनाव का लाभ उठाने का प्रयास कर रहा था।
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जबसे चीन के साथ भारत के संबंध कुछ मधुर होने शुरू हुए हैं, अमेरिका की प्रतिक्रिया का भारत के कूटनीतिज्ञ विश्लेषण कर रहे हैं। रूस के साथ भारत की नजदीकी से वह खफा है। अभी अमेरिका ने 19 भारतीय कंपनियों पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगाए हैं कि वे रूस को मदद पहुंचा रही थीं। हालांकि, भारत ने अपने रिश्तों में संतुलन बनाए रखा है।
चीन का बड़ा व्यापार भारत के साथ
रूस के साथ अपने रिश्तों में किसी तरह की खटास नहीं आने दी है और अमेरिका से भी नजदीकी बनाए रखी है। भारत की आर्थिक हैसियत लगातार बढ़ रही है और वह वैश्विक दक्षिण देशों के लिए भी भरोसेमंद साझीदार बन रहा है। इस कारण कोई भी ताकत भारत को नजरअंदाज नहीं कर पा रही। चीन का बड़ा व्यापार भारत के साथ है, वह उसे किसी भी रूप में गंवाना पसंद नहीं करेगा।
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भारत और चीन के बीच चल रही मौजूदा कवायद से तमाम समस्याओं पर स्थायी समाधान की उम्मीद की जा सकती है। मानसरोवर तीर्थयात्रा शुरू होने का भारतीय श्रद्धालु अरसे से इंतजार कर रहे हैं। सीधी उड़ान सेवाओं से विद्यार्थियों और पेशेवरों को राहत मिलेगी। हालांकि, सवाल अभी भी है कि चीन अपने ताजा रुख पर कब तक कायम रह पाता है। जब तक वह अपनी विस्तारवादी नीतियों से तौबा नहीं करता, उसके किसी भी कदम पर बहुत भरोसा करना ठीक नहीं।
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यह समझना होगा कि भारत और चीन सिर्फ पड़ोसी ही नहीं हैं, वे दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश भी हैं। वे एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। दोनों पक्षों ने अतीत में दिखाया है कि मजबूत आर्थिक संबंधों और लोगों के बीच संपर्क में सीमा विवाद बाधा नहीं बनते। अतीत में व्यापार संबंध जबदस्त ऊंचाई पर रहे, लेकिन निवेश, यात्रा और वीजा सहित कई क्षेत्रों में संबंध टूट गए। उनकी बहाली की कवायद स्वागतयोग्य है। संबंधों में भरोसा बहाल हो और यह स्थायी हो, तभी बात बनेगी।