चीन के तियानजिन में संपन्न हुए शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन यानी एससीओ के घोषणापत्र में जिस तरह साफ शब्दों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की बात शामिल की गई, वह भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत को दर्शाता है। दरअसल, आतंकवाद के मुद्दे पर भारत लगातार कुछ ताकतवर देशों से अपना पक्ष स्पष्ट करने की मांग करता रहा है। मगर कुछ देशों की ओर से प्रत्यक्ष तौर पर आतंकवाद की आलोचना, तो प्रच्छन्न रूप से इसे शह देने वालों के प्रति नरमी इस मुद्दे की जटिलता को बढ़ाता ही है।

इसीलिए भारत ने हर मौके पर आतंकवाद के खिलाफ अभियान चलाने और एकजुटता की अपील की। तियानजिन में हुए एससीओ सम्मेलन में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत पिछले चार दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा है… हमें साफ तौर पर और सर्वसम्मति से यह कहना होगा कि आतंकवाद पर कोई भी दोहरा मापदंड स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पहलगाम में आतंकी हमला न सिर्फ भारत पर था, बल्कि यह मानवता में विश्वास रखने वाले देशों और लोगों के लिए एक खुली चुनौती थी।

पहलगाम आतंकी हमले की हुई निंदा

जाहिर है, अब एससीओ के घोषणापत्र में जिस तरह सभी सदस्य देशों की ओर से पहलगाम में आतंकी हमले की निंदा की गई, वह भारत की चिंता को रेखांकित करती है। घोषणापत्र में यह भी कहा गया कि ऐसे आतंकी हमलों के दोषियों और उनके मददगारों को न्याय के कठघरे में लाया जाना चाहिए। एक जरूरी पहलू के रूप में इसमें आतंकवादियों की घुसपैठ को खत्म करने का आह्वान किया गया। गौरतलब है कि पिछले एससीओ सम्मेलन में इस मुद्दे को घोषणापत्र में शामिल करने पर सहमति नहीं बनी थी।

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मगर अब एससीओ के सदस्य देशों ने आतंकवाद की समस्या पर भारत के पक्ष में अपनी संवेदनशीलता दिखाई और इसके खिलाफ अभियान चलाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई। मगर सवाल है कि भारत में आतंकवाद की समस्या के स्रोत के रूप में अगर पाकिस्तान अपनी आदत से बाज नहीं आता है और दूसरी ओर चीन इसकी अनदेखी करता है तो इसे कैसे देखा जाएगा।

पाकिस्तान से संचालित होती हैं आतंकी गतिविधियां

यह छिपा तथ्य नहीं है कि पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करने वाले आतंकवादी संगठनों को पालने-पोसने वाला कौन है। इसके बावजूद चीन कई स्तर पर पाकिस्तान की मदद करता रहा है और इसी वजह से कई बार भारत के लिए बेहद असुविधाजनक स्थिति पैदा हो जाती है। अब खुद चीन की धरती पर ही अगर एससीओ सम्मेलन के घोषणापत्र में पहलगाम हमले और आतंकवाद की निंदा की गई है, तो यह प्रकारांतर से पाकिस्तान और उसका बचाव करने वाले देशों को दिया गया एक साफ संदेश भी है।

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तियानजिन में हुए एससीओ सम्मेलन को राष्ट्राध्यक्षों के स्तर पर और घरेलू कूटनीतिक बैठकों में सबसे अहम आयोजनों में से एक माना जा रहा है। यों भी, एससीओ की शुरूआत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और आर्थिक सहयोग को मजबूती देने के मकसद से ही हुई थी। इस लिहाज से देखें तो निश्चित रूप से सम्मेलन में शामिल देशों के दस वर्ष के विकास की रणनीति, सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, आपसी संबंधों और सांस्कृतिक सहयोग के मुद्दे पर भी बहुस्तरीय सहमति बनी। मगर इसके घोषणापत्र में आतंकवाद के मुद्दे को जिस रूप में शामिल किया गया, उसे पाकिस्तान के लिए एक झटका, तो भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक कामयाबी के तौर पर देखा जा सकता है।