जब भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के तहत पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों को नामित करने का प्रस्ताव भारत और अमेरिका लाते हैं, चीन अड़ंगा लगा देता है। चीन आदतन ऐसा करता है। मुंबई हमलों में वांछित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी साजिद मीर को नामित करने के प्रस्ताव पर चीन ने अपना रंग दिखाया है।
यह प्रस्ताव पिछले साल सितंबर में अमेरिका ने रखा था और भारत ने इसका समर्थन किया था। चीन ने तब इस पर तकनीकी रोक लगा दी थी, जिसका प्रावधान सुरक्षा परिषद की दाएश और अल कायदा प्रतिबंध समिति की प्रक्रियाओं में किया गया था। तकनीकी रोक के प्रावधान का उपयोग तब किया जाता है जब कोई सदस्य नामित व्यक्ति के बारे में अधिक जानकारी चाहता है।
संयुक्त राष्ट्र में अगला कदम प्रस्ताव को स्थायी आपत्ति के तहत रखना होता है। चीन ने यही किया है, जबकि साजिद मीर की आतंकी पृष्ठभूमि और 2008 में मुंबई में हुए हमले में उसकी भूमिका के बारे में सैकड़ों सबूत उपलब्ध हैं। अब साजिद मीर को प्रतिबंधित करने के किसी भी प्रयास के लिए नया प्रस्ताव रखना होगा।
26/11 हमलों में मीर की भूमिका सर्वविदित है। मुंबई हमलों में वांछित लश्कर के आतंकी हेडली ने अमेरिकी एजंसी एफबीआइ की पूछताछ में मीर और पाकिस्तानी सेना के एक मेजर इकबाल का नाम लिया था। 2016 में मुंबई की एक अदालत में अपनी गवाही में भी हेडली ने दोनों के नाम लिए थे। दरअसल, मीर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने पर रोक लगाने में बेजिंग का निजी कोई फायदा नहीं है, सिवाय इसके कि वह खुद की ताकत दिखाए और पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों के लिए ढाल बने। मीर से जुड़े प्रस्ताव पर चीन के ताजा रवैये को लेकर भारत की प्रतिक्रिया स्वभाविक है कि आतंकवाद पर चीन की धारणा आत्म-विनाशकारी है।
चुनौती वैश्विक स्तर की है और अगर आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की इच्छाशक्ति है, तो तुच्छ भू-राजनीतिक हितों को दरकिनार करना होगा। लेकिन पाकिस्तान के साथ अपने भू-राजनीतिक हितों के कारण चीन अपनी सोच का दायरा विस्तृत नहीं कर पा रहा।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन का गैर जिम्मेदाराना रवैया तब सामने आया है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर हैं। इस घटनाक्रम का अमेरिका, हिंद-प्रशांत क्षेत्र की कूटनीति या क्वाड की गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं है। चीन सिर्फ यह दिखाना चाहता है कि उसे वैश्विक हितों की परवाह नहीं है।
वह पाकिस्तान के नापाक इरादों का साथ देगा। लेकिन चीन और पाकिस्तान – दोनों को याद रखना होगा कि आतंक से जुड़े संगठन अपने आकाओं के लिए ही मुसीबत बन जाते हैं, जैसे कि आज पाकिस्तान के लिए तहरीक-ए-तालिबान बना हुआ है। चीन ने भविष्य के लिए ऐसी ही आशंका का बीजारोपण किया है। क्षेत्रीय भू-राजनीति के संकीर्ण हितसाधन में चीन यह भूल रहा है कि आतंकवाद की लपटें उसके दामन को भी झुलसा सकती हैं।