दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दौरान शराब नीति को लेकर उठा विवाद अब सरकार बदलने के साथ फिर से जोर पकड़ता दिखने लगा है। हाल में इस बात पर विवाद ने तूल पकड़ लिया था कि अगर शराब नीति के मसले पर नियंत्रक महालेखा परीक्षक यानी कैग ने अपनी रपट दी है, तो उसे विधानसभा के पटल पर रखने में आप सरकार को क्या और क्यों दिक्कत थी। अब नई सरकार ने अपने गठन के कुछ ही दिनों बाद कैग की रपट को विधानसभा के पटल पर रख दिया है। सवाल है कि जो आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की जमीन पर बनी और फिर सत्ता में आई थी, उसने इस मसले पर इतनी पर्दादारी कैसे और क्यों की।
गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा के मौजूदा सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को सदन में शराब नीति पर कैग की रपट पेश की गई, जिसमें कहा गया है कि नई शराब नीति से दिल्ली सरकार को दो हजार दो करोड़ रुपए का घाटा हुआ। रपट के मुताबिक, नीति कमजोर थी और लाइसेंस प्रक्रिया में भी गड़बड़ी हुई। इस संदर्भ में विशेषज्ञ समिति ने नीति में कुछ बदलाव के सुझाव दिए थे, लेकिन तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उसे नजरअंदाज कर दिया था।
आप और भाजपा के बीच राजनीतिक टकराव की स्थिति बनती दिख रही है
दरअसल, पिछली सरकार पर इस रपट को रोके रखने, सदन में पेश न करने और इस तरह संविधान का खुलेआम उल्लंघन करने के आरोप लगे थे। इस मसले पर उपराज्यपाल और तत्कालीन आप सरकार के बीच काफी टकराव की स्थिति भी बनी थी। तब भी मुख्य सवाल यही उठा था कि अगर आम आदमी पार्टी की सरकार शराब घोटाले में अपने ऊपर लगे आरोपों और इससे संबंधित नीतियों में अनियमितता को गलत बता रही थी, तो उसे कैग की रपट को विधानसभा के पटल पर रखने में हिचक क्यों हो रही थी।
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अब कैग की रपट पेश होने के बाद जो तथ्य प्रकाश में आए हैं, उस पर स्वाभाविक ही एक बार फिर दिल्ली में आप और भाजपा के बीच राजनीतिक टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। हालांकि जरूरत इस बात की है कि बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के इस मसले पर जनता के सामने पूरी वस्तुस्थिति पारदर्शिता के साथ रखी जाए।