बिहार में जब सुशासन के दावे के साथ नीतीश कुमार सत्ता में आए थे, शुरू में कुछ समय तक सख्ती रही और आपराधिक गिरोह दुबक कर बैठे दिखे थे। मगर फिर उन्होंने सिर उठाना शुरू किया, तो उन पर काबू पाना नीतीश सरकार के लिए चुनौती ही बना रहा। कई बार ऐसा लगता है कि अपराधियों के भीतर पुलिस और कानून का कोई खौफ नहीं रह गया है। वे सरेआम किसी की हत्या कर बड़ी आसानी से निकल भागते हैं और पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाती। खुद वहां की पुलिस पर भी अक्सर हमले होते रहते हैं।

अगर सचमुच वहां कानून-व्यवस्था चुस्त होती, सुशासन के दावे हकीकत होते, तो नीतीश कुमार के इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद आए दिन हिंसक घटनाएं इस तरह नहीं हो पातीं और न पुलिस इस कदर कभी लाचार नजर आती। इसका ताजा उदाहरण राज्य की राजधानी में एक अस्पताल में घुस कर बदमाशों का गोली चला कर अस्पताल प्रबंधक को जान से मार देना है। उस दिन पूरे शहर में बिहार दिवस के जलसे आयोजित थे और बदमाश शाम के छह बजे अस्पताल के भीतर घुसे, अस्पताल की निदेशक महिला की गोली मार कर हत्या कर दी और बड़े आराम से निकल गए।

बिहार से पहले बंगाल में ही हो चुकी है घटना

यह कोई पहली ऐसी घटना नहीं है, जब बदमाशों ने इस तरह किसी की हत्या कर दी। कभी कहीं जातीय हिंसा भड़क उठती है और लोग मारे जाते हैं, तो कभी कहीं किसी वैमनस्य के कारण किसी की हत्या कर दी जाती है। ताजा घटना के पीछे भी आपसी वैमनस्य बताया जा रहा है। इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी मरीज के परिजनों की अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था को लेकर कोई नाराजगी रही हो। पर किसी की किसी से नाराजगी का अर्थ यह नहीं होता कि वह मनमाने तरीके से किसी की जान ले ले।

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अस्पतालों और चिकित्सा कर्मियों की सुरक्षा को लेकर पिछले कुछ समय से गहरे सवाल उठते रहे हैं। कुछ समय पहले ही पश्चिम बंगाल के अस्पताल में प्रशिक्षु चिकित्सक की हत्या के बाद देश भर के डाक्टरों ने अपनी सुरक्षा को लेकर आंदोलन किया था। तब सरकार ने उनकी सुरक्षा का भरोसा दिलाया था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस दिशा में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। उससे पहले भी दिल्ली आदि के चिकित्सक अस्पतालों में तैनात चिकित्सा कर्मियों की सुरक्षा का सवाल उठाते रहे हैं। ऐसा नहीं माना जा सकता कि बिहार सरकार इस बात से अनजान है। अगर वहां प्रशासन सचमुच अस्पतालों और चिकित्सा कर्मियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर होता, तो ऐसी घटना शायद न घटने पाती।

बिहार के अपराधियों में कानून का कोई भय नहीं

सुशासन केवल नारों से स्थापित नहीं हो जाता, उसके लिए अपराधियों में कानून का भय पैदा करना पड़ता है। नीतीश कुमार सरकार सुशासन के दावे तो खूब करती रही है, पर हकीकत यही है कि बिहार के अपराधियों में कानून का कोई भय नहीं है। सवाल यह है कि अगर 2005 से पहले के शासनकाल पर जंगल राज होने का आरोप लगाया जाता था, तो आज अपराधियों के इस तरह बेखौफ हो जाने और कानून व्यवस्था के लाचार दिखने को किस रूप में देखा जाएगा! जहां अपराधी पुलिस पर हमले करने से न हिचकते हों, वहां सुशासन या बेहतर कानून-व्यवस्था का भला कैसे दावा किया जा सकता है।

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कोई भी सरकार लंबे समय तक अपने पहले की सरकारों पर किसी अव्यवस्था का दोष मढ़ कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती। बिहार में हिंसा और अपराध का पुराना इतिहास रहा है, इसलिए नीतीश सरकार यह मान कर आश्वस्त नहीं हो सकती कि सरकार बदलने के साथ ही वह प्रवृत्ति भी बदल गई। उसे बदलने के लिए जमीनी स्तर पर अभी तक शायद गंभीरता से काम होना बाकी है।