मुंबई में प्रणव धनवाड़े ने भारतीय क्रिकेट की दुनिया में जो इतिहास रचा है, वह लंबे समय तक याद रखा जाएगा। सिर्फ तीन सौ तेईस गेंदों पर नाबाद एक हजार से ज्यादा रन बनाना आसान बात नहीं है, लेकिन महज पंद्रह साल के प्रणव ने यह कमाल करके क्रिकेट की दुनिया से जुड़े तमाम विश्लेषकों को हैरान कर दिया। मैदान में हर ओर रन बनाने के मामले में उसके बल्ले ने जो कला बिखेरी, वह चौंकाने वाली थी। स्वाभाविक ही क्रिकेट में बल्लेबाजी के बादशाह कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर से लेकर कई मशहूर खिलाड़ियों ने प्रणव को बधाई दी और भविष्य का क्रिकेटर बताया। गौरतलब है कि भंडारी कप अंतर स्कूल प्रतियोगिता में प्रणव ने एक हजार नौ रन बना कर सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली सहित दुनिया के कई और बल्लेबाजों के रिकार्ड तोड़ डाले।
यह सही है कि देश-विदेश के कई और खिलाड़ियों ने अपने समय में कई अहम रिकार्ड बनाए हैं। मगर फिलहाल प्रणव ने उन सबको पीछे छोड़ दिया। प्रणव की यह उपलब्धि इसलिए भी ज्यादा अहम है कि उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत अच्छी नहीं है। उसके पिता मुंबई में ऑटो चलाते हैं। पूरा परिवार एक छोटे-से घर में रहता है। जाहिर है, बेहतर खेल सुविधाओं के मामले में उसे अपने पिता के सीमित सहयोग के अलावा शायद बहुत कुछ नहीं मिल सका होगा। प्रणव की यह उपलब्धि बताती है कि देश की मुख्यधारा के खेल और खिलाड़ियों के अलावा अभाव में पलती ऐसी प्रतिभाएं भी हैं, जिन्हें अगर मौका मिले तो वे अपनी क्षमता साबित कर सकती हैं।
हाल ही में हिमाचल प्रदेश में ऊना जिले के ईसपुर गांव की नौवीं कक्षा की छात्रा बक्शो ने सरकार की ओर से जिला स्तरीय स्कूल एथलेटिक्स में पांच हजार मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उसकी जीत भी इसलिए खास है कि उसका परिवार बेहद गरीबी में गुजारा कर रहा है, नौ साल पहले उसके पिता की मौत हो चुकी है और बख्शो खुद पित्ताशय में पथरी के दर्द से परेशान रहती है। उसकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जिस दौड़ में उसने हिस्सा लिया, उसमें जूते न पहने होने की वजह से उसे नंगे पांव दौड़ना पड़ा। फिर भी उसने सभी सुविधाओं से लैस बाकी सभी धावकों को पीछे छोड़ दिया। बक्शो जैसी और भी प्रतिभाएं दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में छिपी हैं, लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिल पाता।
भारतीय खेल प्राधिकरण के सहयोग से प्रतिभाओं को ढूंढ़ने के लिए राष्ट्रीय प्रतिभा खोज अभियान चलाने की बातें होती रही हैं, लेकिन सच यह है कि अगर कभी ग्रामीण इलाकों की प्रतिभाएं अपने बूते सामने आ भी जाती हैं, तो उन्हें उचित मार्गदर्शन और संरक्षण नहीं मिल पाता। ऐसे सैकड़ों उदाहरण होंगे कि कोई बच्चा भविष्य में बेहतरीन खिलाड़ी साबित हो सकता था, लेकिन समय पर सुविधा और उचित प्रशिक्षण नहीं मिल पाने के चलते वह समय से पहले ही गुम हो जाता है। हमारे देश में अभी यह परंपरा विकसित नहीं हुई है कि ऐसी क्षमतावान प्रतिभाओं को खोज कर निकाला जाए और उन्हें उचित प्रशिक्षण और सुविधा देकर भविष्य के खिलाड़ी के रूप में तैयार किया जाए। जबकि चीन या अमेरिका जैसे देशों ने इस मोर्चे पर शानदार नतीजे सामने रख कर साबित किया है कि अगर दूरदराज के इलाकों में खोजा जाए तो बेहतरीन प्रतिभाएं सामने आ सकती हैं।