किसी भी खेल के मामले में परस्पर सहयोग की रणनीति और बेहतर संवाद से ही उत्कृष्ट प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है। पिछले कुछ समय से जिस तरह भारतीय क्रिकेट में उतार-चढ़ाव दिख रहा है, उससे स्पष्ट है कि खिलाड़ी पूरे आत्मविश्वास के साथ नहीं मैदान में नहीं उतर रहे। उन पर कहीं न कहीं कोई दबाव या निराशा है। टीम को सहेजने-संवारने और बेहतर प्रदर्शन के लिए तैयार करने में कप्तान के साथ कोच की भी भूमिका बेहद अहम होती है। यह दुखद है कि मुख्य कोच गौतम गंभीर जिस तरह की तल्खी का प्रदर्शन कर रहे हैं, उससे टीम के मनोबल तक पर असर पड़ सकता है। मेलबर्न टैस्ट में हार के बाद गंभीर ने पूरी टीम के लिए जिस तरह कुछ कड़े शब्द कहे, उससे तमाम कोशिशों के बावजूद ड्रेसिंग रूम का तनाव बाहर आ गया। अगर खिलाड़ियों के प्रदर्शन से गंभीर नाखुश हैं, तो उन्हें इसकी तह में जाना चाहिए।

खिलाड़ियों से संवाद कर उन्हें विश्वास में लेना चाहिए। भारतीय टीम एक चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। युवा खिलाड़ियों का कुछ मुद्दों पर अपने मुख्य कोच के साथ एकराय न होना भी चिंता का विषय है। कहा तो यह भी जा रहा है कि पहले के दो कोच के कार्यकाल में जिस तरह संवाद होता था, अब नहीं होता।

सवाल है कि अगर ड्रेसिंग रूम में अशांति रहेगी और कड़वी भाषा में संवाद होगा, तो खिलाड़ियों से क्या उम्मीद की जा सकती है। गौतम गंभीर अपने दौर में आक्रामक खिलाड़ियों में से एक रहे हैं। उनका मुखर व्यक्तित्व है। मगर कभी-कभी उनका गुस्सा सभी का ध्यान खींच लेता है। वे राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं, इसलिए शायद उन्हें जनता से संवाद करने और सभी को साथ लेकर चलने की अहमियत का अंदाजा होगा।

यह बताने की जरूरत नहीं कि फिलहाल उन्हें इसी कौशल को अपनाने की जरूरत है। कोच के तल्ख तेवर से खिलाड़ियों के प्रदर्शन में सुधार की भूमिका नहीं बनेगी। इसके लिए खेल की तकनीकों पर ध्यान देने के साथ-साथ खिलाड़ियों का मनोबल ऊंचा रहना भी जरूरी होता है। मुख्य कोच की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह खेल के साथ-साथ सौहार्द और संवाद का एक बेहतर माहौल भी तैयार करें, ताकि खिलाड़ियों के भीतर उत्साह का संचार हो, क्योंकि इसका असर प्रदर्शन पर भी पड़ता है