मणिपुर में लंबे समय से शांति बहाली के प्रयास चल रहे हैं। वहां करीब दो वर्ष पहले मैतेई और कुकी समुदायों के बीच टकराव की शुरूआत के बाद हालात इस कदर बिगड़ गए कि उसे संभाल पाना राज्य की तत्कालीन सरकार के लिए संभव नहीं हुआ और इसी वजह से पूर्व मुख्यमंत्री एस बीरेन सिंह को आखिर इस्तीफा देना पड़ा। पिछले तीन महीने से वहां राष्ट्रपति शासन लागू है। यों हिंसा और संघर्ष पर काबू पाने में नाकामी की वजह से पहले से ही वहां राष्ट्रपति शासन की मांग हो रही थी।

विडंबना यह है कि आज भी मैतेई और कुकी समुदायों के बीच टकराव को खत्म करना और सर्वसम्मति से समाधान तक पहुंचना मुमकिन नहीं हो सका है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि वहां नई सरकार के गठन के लिए जो कवायद शुरू हुई है और किन्हीं हालात में यह संभव हो पाता है, तो क्या इससे मणिपुर की मौजूदा समस्या का कोई ठोस हल निकल सकेगा और क्या वहां हिंसा और टकराव का दौर खत्म हो पाएगा।

दस विधायकों ने राज्यपाल से की मुलाकात

गौरतलब है कि मणिपुर में राजग के दस विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात कर चौवालीस विधायकों के समर्थन का हवाला देते हुए सरकार गठन की मांग की है। विधायकों के इस समूह ने सरकार गठन को जनता की इच्छा बताया। लेकिन अगर इन विधायकों के साथ कुकी समुदाय के दस विधायक नहीं हैं, तो ऐसे में इस समूह के पास राज्य की सबसे मुख्य समस्या से पार पाने के लिए क्या योजना और दृष्टि है।

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राज्य में नई सरकार बनाने के पक्ष में भाजपा सहित राजग के कई विधायक जरूर हैं, लेकिन भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अब भी सरकार के बनाने के दावों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। वहीं केंद्र सरकार की ओर से मणिपुर में निकट भविष्य में राष्ट्रपति शासन नहीं हटाने की भी खबर आई है। ऐसे में नई सरकार के गठन की मांग के धरातल पर उतरने की उम्मीद फिलहाल आगे की बात लगती है। इसके बावजूद यह सच है कि मणिपुर में शांति बहाली और सामुदायिक टकराव के कारणों को दूर कर दूरगामी हल निकलना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिए ही संभव है।

मैतेई समुदाय को जनजातीय दर्जा देने को लेकर शुरू हुआ था बवाल

हालांकि मणिपुर में नई सरकार के गठन को लेकर चाहे जो भी कोशिशें चल रही हों, लेकिन फिलहाल सबसे जरूरी यह है कि वहां आम जनजीवन जिस अस्थिरता और आए दिन हिंसक सामुदायिक टकराव से दो-चार है, उसका कोई ठोस समाधान निकाला जाए। मैतेई समुदाय को जनजातीय दर्जा देने के सवाल पर दो वर्ष पहले जिस हिंसा की शुरूआत हुई थी, उसमें अब तक ढाई सौ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग विस्थापित हो चुके हैं। आज भी आए दिन गोलीबारी या हिंसक घटनाओं की खबरें आती रहती हैं।

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हैरानी की बात यह है कि राज्य से लेकर केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच ऐसी खाई बन गई है, जिसे पाटे बिना किसी दीर्घकालिक हल तक नहीं पहुंचा जा सकता। मगर दोनों समुदायों में परस्पर विश्वास बहाली को लेकर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया, जो संवाद का कोई सार्थक पुल तैयार करे और बातचीत के जरिए समस्या का समाधान निकालने की कोशिश हो। आज भी अगर मणिपुर का आम जनजीवन अस्थिर है, तो इसके लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है? जाहिर है, नई सरकार के गठन के प्रयासों के समांतर जरूरत इस बात की है कि वहां संघर्षरत समुदायों के बीच विश्वास और संवाद कायम किया जाए।