आखिरकार जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों की तारीखें घोषित कर दी गईं। वहां दस वर्ष बाद चुनाव होने जा रहे हैं। स्वाभाविक ही, वहां के राजनीतिक दलों में उत्साह नजर आ रहा है। दरअसल, वहां चुनाव न कराए जा सकने की वजह से लंबे समय से लोकतांत्रिक प्रक्रिया थम-सी गई थी। राजनीतिक गतिविधियां भी ठहरी हुई थीं। इसलिए मांग की जा रही थी कि जितना जल्दी हो सके, वहां चुनाव कराए जाएं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा था कि तीस सितंबर तक वहां चुनाव करा लिए जाएं। अब निर्वाचन आयोग ने तीन चरण में वहां चुनाव कराने की घोषणा कर दी है। लंबे समय बाद वहां इतने कम चरण में चुनाव होंगे।

परिसीमन को लेकर राजनीतिक दलों ने गहरा असंतोष जताया था

हालांकि इसके साथ ही हरियाणा विधानसभा के लिए भी मतदान होंगे, जो एक ही चरण में कराए जाएंगे। मगर सबकी नजर जम्मू-कश्मीर पर बनी हुई है। वहां परिसीमन का काम पिछले वर्ष ही पूरा कर लिया गया था, जिसमें तीन नई सीटें जुड़ गई थीं। अब वहां भी नब्बे सीटें हो गई हैं। हालांकि परिसीमन को लेकर वहां के राजनीतिक दलों ने गहरा असंतोष व्यक्त किया था और उनका आरोप था कि उनसे सुझाव नहीं लिया गया। मगर अब वह असंतोष थम गया लगता है।

किसी भी राज्य को लंबे समय तक लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूर रखने से वहां के विकास कार्यों पर तो बुरा असर पड़ता ही है, नागरिकों का लोकतंत्र पर भरोसा भी कमजोर होने लगता है। दस वर्ष पहले हुए पिछले चुनाव में जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, तो भाजपा से सहयोग से पीडीपी ने सरकार बनाई थी। वह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी। समय से पहले ही महबूबा मुफ्ती ने इस्तीफा दे दिया और वहां राज्यपाल का शासन लगा दिया गया था। उसके एक वर्ष बाद विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया था। अनुच्छेद तीन सौ सत्तर हटने के बाद से वहां उपराज्यपाल का शासन चला आ रहा है।

केंद्र सरकार लगातार दावा करती रही कि वह जल्द वहां चुनाव करा कर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस लौटा देगी। मगर स्थितियां सामान्य न होने के तर्क पर चुनाव टलते रहे। माना जा रहा था कि लोकसभा के साथ ही वहां विधानसभा के चुनाव भी करा लिए जाएंगे, मगर निर्वाचन आयोग ने अलग से चुनाव कराना उचित माना। देर से ही सही, अब निर्वाचन आयोग की परीक्षा है कि वह किस प्रकार वहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराता है।

कई मामलों में दूसरे राज्यों की अपेक्षा जम्मू-कश्मीर संवेदनशील राज्य है। वहां हर वक्त आतंकी गतिविधियों का खतरा बना रहता है। कई लोगों का मानना है कि अगर विधानसभा चुनाव ठीक से संपन्न होंगे, तो आतंकी गतिविधियों पर विराम लगाने में भी कामयाबी मिल सकती है। लोकसभा चुनाव में जिस तरह लोगों का उत्साह देखने को मिला, उससे उम्मीद की जाती है कि जम्हूरियत के जश्न में लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेंगे। निर्वाचन आयोग ने भी ऐसी ही उम्मीद जताई है। अब निर्वाचन आयोग के सामने चुनौती यह है कि वह इस चुनाव में पारदर्शिता बरते। लोकसभा चुनाव को लेकर उसे कई प्रकार के आरोपों का सामना करना पड़ा, जो अभी तक खत्म नहीं हुए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनसे सबक लेते हुए वह जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनावों को सचमुच जम्हूरियत का जश्न बनाने में कामयाब होगा।