यह विषाणु लगातार स्वरूप बदल और अधिक घातक रूप में सामने आ रहा था। तब यह स्पष्ट हो चुका था कि मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर ही इसके प्रभाव को बेअसर किया जा सकता है। ऐसे समय में ऐसा टीका बनाना कठिन काम माना जा रहा था, जो मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सके। मगर कारिको और वीसमैन ने एमआरएनए की खोज कर इस चुनौती को आसान बना दिया था।
यह विषाणु लगातार स्वरूप बदल और अधिक घातक रूप में सामने आ रहा था। तब यह स्पष्ट हो चुका था कि मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर ही इसके प्रभाव को बेअसर किया जा सकता है। ऐसे समय में ऐसा टीका बनाना कठिन काम माना जा रहा था, जो मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सके। मगर कारिको और वीसमैन ने एमआरएनए की खोज कर इस चुनौती को आसान बना दिया था।
इस बार चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की घोषणा निश्चित रूप से एक ऐसी खोज का सम्मान है, जिससे महामारियों से पार पाने और मानव शरीर में प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने का एक नया रास्ता खुला। यह सम्मान कोरोना से लड़ने के लिए एमआरएनए टीके विकसित करने वाले काटालिन कारिको और ड्रयू वीसमैन को संयुक्त रूप से दिया जा रहा है।
नोबेल सभा के अनुसार इन दोनों वैज्ञानिकों ने ‘न्यूक्लियोसाइड’ आधारों को संशोधित करने से जुड़ी महत्त्वपूर्ण खोजें की है, जिनकी वजह से कोविड-19 के एमआरएनए टीके विकसित कर पाना मुमकिन हो पाया। निश्चित रूप से इन टीकों के विकास की वजह से लाखों जिंदगियां बचाई जा सकीं। कोरोना महामारी के वक्त पूरी दुनिया में लोगों की जान बचाना चुनौती बना हुआ था, इसके विषाणु से लड़ने के लिए कोई भरोसेमंद दवाई उपलब्ध नहीं थी।
यह विषाणु लगातार स्वरूप बदल और अधिक घातक रूप में सामने आ रहा था। तब यह स्पष्ट हो चुका था कि मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर ही इसके प्रभाव को बेअसर किया जा सकता है। ऐसे समय में ऐसा टीका बनाना कठिन काम माना जा रहा था, जो मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सके। मगर कारिको और वीसमैन ने एमआरएनए की खोज कर इस चुनौती को आसान बना दिया था।
कोरोना महामारी के दूसरे चरण में स्थिति यह थी कि हर दिन हजारों लोग मौत के मुंह में समा रहे थे, अस्पतालों में जगह कम पड़ गई थी, कोरोना मरीजों के लिए अलग से शिविर लगाने पड़े थे। ऐसे भयावह वक्त में टीके तैयार करना और फिर उनका परीक्षण करके सभी नागरिकों तक उपलब्ध कराना और भी मुश्किल काम था।
मगर दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस कठिन चुनौती को स्वीकार किया और कम समय में भरोसेमंद टीकों का निर्माण कर व्यापक पैमाने पर इसकी खुराक देना संभव बनाया था। इस कामयाबी के पीछे कारिको और वीसमैन की खोज ने बड़ी भूमिका निभाई थी। इन वैज्ञानिकों की ही खोज से पता चल सका था कि एमआरएनए हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ कैसे संपर्क करता और यह किस तरह शरीर में प्रोटीन का प्रवाह बढ़ा कर रोगों से लड़ने में मददगार साबित हो सकता है।
हालांकि हर वैज्ञानिक खोज के पीछे कोई न कोई आधार खोज काम कर रही होती है। इस दृष्टि से कारिको और वीसमैन को निश्चित रूप से स्वीडिश वैज्ञानिक स्वांते पाबो की खोज से मदद मिली थी। पाबो ने निएंडरथाल डीएनए के रहस्यों को उजागर किया था, जिससे मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारियां सामने आई थीं।
पाबो को पिछले साल चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। जिस तरह बदलती जीवन-शैली, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण, कुपोषण आदि के चलते नए विषाणुओं के पनपने और खतरनाक रूप धारण करने के खतरे हर समय बने रहते हैं। कोविड के महामारी रूप में फैलने की बड़ी वजह भी यही थी। भविष्य में भी ऐसी महामारियों का आशंकाएं जताई जाती रहती हैं।
ऐसे में चिकित्सा विज्ञानियों का मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर ही रोगों से लड़ने और जीवन बचाने का भरोसा बना हुआ है। डीएनए के रहस्यों से परदा उठने के बाद मानव शरीर की सूक्ष्म संरचना में बदलाव करने के रास्ते खुलते गए हैं। कारिको और वीसमैन ने इस दिशा में निश्चित रूप से संभावनाओं से भरा एक रास्ता खोला, जो भविष्य के खतरों का सामना करने का साहस देता है।