विक्रम जीत

भारत में क्रिकेट का खेल फिरंगी लेकर आए। दहेज में मिली मुम्बा देवी का नाम बॉम्बे रखा। जिमखाना बनाया। सफेद कपड़े पहन, कपड़े धोने वाली थापी से लगभग एकाध फुट बड़ी और चौड़ी थापी ले, साढ़े पांच आउंस की लाल गेंद को मारना, ‘गुड शॉट’ कह कर हल्के-हल्के ताली बजाते हुए अपना ‘जिन’ टॉनिक का गिलास उठा कर चुस्की लेना फिरंगियों की इतवारी आदत थी। अगर क्रिकेट फिरंगियों का था तो समय का चक्र वहां बड़ी तुर्रे वाली पगड़ी लगाए ‘यस मैम’, ‘यस सर’ करते भागते फिर रहे गंगादीन का था। समय का चक्र बदला। आज वही मुम्बा देवी यानी आज की मुंबई नीले, पीले, लाल, हरे, गुलाबी रंग से अपने मुंह रंगे फिरंगी क्रिकेट पर ढोल, बिगुल, नगाड़ों के संग गंगादीन के वंशजों के साथ नाचती नजर आती है। नवजोत सिंह सिद्धू का जन्म पंजाब के पटियाला शहर में हुआ। अफसोस कि कभी फुलकिया राज की राजधानी रहा पटियाला सिर्फ ‘पटियाला पैग’ के लिए जाना जाता है। जबकि बाबा आला सिंह द्वारा स्थापित फुलकिया राज्य में रोशन दिमाग राजा भूपेंद्र दिल्ली ने पटियाले में मोहिंद्रा शिक्षक संस्था की स्थापना की और उत्तर क्षेत्र में क्रिकेट लाकर चहल में दुनिया का सबसे ऊंचा मैदान तैयार किया। बिशन सिंह बेदी खासकर पाकिस्तान की टीम से भी पिट जाते थे। यह बात भारत के क्रिकेट प्रेमी कहीं न कहीं हजम नहीं कर पाते थे। भारतीय क्रिकेट टीम में सिद्धू का आगमन हुआ और जो पाकिस्तान हमें क्रिकेट में पीटता था, अब पिटने लग गया। खान, अतर, नवाज, बख्त, कादिर से दुनिया डरती थी, लेकिन वे सिद्धू के हाथों बेरहमी से पिटे।

इसके बाद हिंदी क्षेत्र में सिद्धू-प्रेम में जबर्दस्त उछाल आया। सिद्धू ने भी मंजे हुए बल्लेबाज की तरह उछलती गेंद को और लोक-प्रेम में उछाल को बखूबी संभाला। फिर संन्यास के बाद क्रिकेट कमेंटरी करने पहुंच गए। जसदेव सिंह, सुरजीत सिंह, सुशील दोषी की आवाज के आदी लोगों को सिद्धू की हिंदी-पंजाबी, अंग्रेजी शैली इतनी भायी कि कब क्रिकेट कमेंटरी से मनोरंजन करने वाला समूचे भारत को हा-हा-हा कर रोज शाम हंसाने लगा, पता ही नहीं चला। फिर लोक हास्यप्रेम के नायक सिद्धू का राजनीति में प्रवेश हुआ। भाजपा से सफर शुरू कर टीम बदल कांग्रेस की टीम में आज वे पंजाब सरकार में मंत्री हैं।

गुरु, पीरों, फकीरों, अष्ट-नद का पंजाब कभी काबुल से दिल्ली, खैबर से जलौरी पास तक फैला हुआ था। उसका रास्ता तय करने में तीन दिन लग जाते थे। आज वही आधा-अधूरा पंचनद प्रदेश है, जो सिर्फ तीन घंटे में पार हो जाता है। कुश्ती, कबड्डी, हॉकी- पंजाब के गांव-गांव में खेले जाते थे। कपिलदेव क्रिकेट विश्वकप क्या जीत लाए, अब हर स्कूल-कॉलेज में क्रिकेट अकादमी है। आइपीएल ने तो रही-सही कसर निकाल दी कि अपने बच्चों से ज्यादा मां-बाप क्रिकेट के दीवाने हो गए। अब इंजीनियर, डॉक्टर, सीए बनना क्रिकेटर बनने के मुकाबले तुच्छ है। यों पंजाब में राजनीति भी बड़े शौक से खेली जाती है। अगर क्रिकेट संयोग है तो राजनीति मौके का। पर क्रिकेट की तरह राजनीति में कोई रिटायरमेंट नहीं। जितनी उम्र, उतना परिपक्व, जितना चुप, उतना ही गहरा। यहां गेंदबाज नहीं, धोखेबाज होते हैं। पता भी नहीं चलता और आप रनआउट, क्लीन बोल्ड और कैचआउट तीनों हो जाते हैं, लेकिन अम्पायर आपको आउट नहीं देता। विरोध होता है, आग लगती है, गोली चलती है, बमबारी हो जाती है, अनगिनत गंगादीन मर जाते हैं, पर पंजाब में राजनीति का खेल चलता रहता है।

अगर सिद्धू ने नुक्कड़ से क्रिकेट शुरू किया तो जमींदार परिवार के इमरान खान ने ब्रिटिश आॅक्सफर्ड विश्वविद्यालय से। हालांकि उनके अपने व्यक्ति-परिचय को लेकर कई सवाल जुड़े हैं, लेकिन खान ने पाकिस्तान को क्रिकेट की दुनिया की बुलंदियों तक पहुंचाया। इस सबके बीच आज भी पाकिस्तान में दो तंत्र चलते हैं। प्रजातंत्र सारी दुनिया के लिए और अपने लोगों के लिए फौजी तंत्र। इसके अलावा, पाकिस्तान में सबसे ज्यादा प्रताड़ित महिला है। मुख्तियार माई की आपबीती पढ़ लें, मलाला की कहानी सुन लें। अब वहां इमरान खान के रूप में तब्दीली भी फौज के रहमोकरम से आई है। देखना यह है कि कितनी देर टिकती है।

बहरहाल, ननकाना और कीरतपुर साहिब, पंजाब से लगते पाकिस्तान में हैं। खान पाकिस्तान के सदर बने तो अपने खिलाड़ी दोस्तों को शपथ समारोह में बुलाया। बाकी पहुंचे न पहुंचे, सिद्धू पहुंच गए। जनरल बाजवा को आगोश में भी लिया। प्रतिक्रिया हुई तो करतारपुर रास्ते की बात कह दी। बहुत सारे लोगों के मन में हर्ष के दीये जल गए। अब भारत सरकार ने पहल दिखाई कि करतारपुर तक रास्ता बने, तो उधर सदर पाकिस्तान ने सिद्धू को न्योता भेज दिया पाकिस्तान की तरफ से बनने जा रहे रास्ते के नींव का पत्थर रखने के लिए। यह बात और है कि अकाली कुलदीप वडाला करतारपुर का रास्ता मांगते-मांगते दिवंगत हो गए।

क्रिकेट और राजनीति में एक समानता है- आशा। लोग आस लगा लेते हैं। क्रिकेट की आशा बीसवें ओवर की आखिरी गेंद तक बंधी रहती है। राजनीति की आशा पांच सालों में बनती-बिगड़ती और टूटा भी करती है। पर अगर रहमत की आशा टूटे तो प्रलय आ जाता है। सिद्धू और खान क्रिकेट से राजनीति में तो आ गए और अपने बयानों से लोगों में आस जगा कर सुर्खियों में छा गए। लेकिन सनद रहे, यह गुरु-द्वार और गुरु-दर है, जहां बादशाह सलामत रंक हो जाते हैं और गंगादीन को समय का चक्र मिल जाता है। फिर यह नहीं पता चलता कि गेंद घूम के आई कि सीधी, पर गिल्ली उड़ जाती है!