उसे भले ही थोड़ा ज्यादा विनिमय दूसरे क्षेत्र से मिल जाए, लेकिन वह इंसान किसी भी क्षेत्र में बेहतर काम नहीं कर पाएगा। इसके कारण उसकी उत्पादकता पर गंभीर रूप से असर पड़ेगा और वह हमेशा कुछ न कुछ बहाना करके दूसरी नाव में सवार होता रहेगा।
एक नौकरी के लिए दफ्तर आने जाने में लगने वाले वक्त को बचाकर ऐसे लोग दूसरी नौकरी के लिए इस्तेमाल करके अपनी कमाई बढ़ाने की वजह से ही घर से काम करने के ढांचे में नौकरी की तलाश कर रहे हैं। इसके लिए एक प्रभावी नियम बनाने चाहिए, ताकि लोगों को अपने गुजारे के लिए या अपने खर्च के लिए खुद को इस तरह झोंकने या फिर किसी के साथ बेईमानी करने की जरूरत नहीं पड़े।
समराज चौहान, कार्बी आंग्लांग, असम</p>
राजनीति का चक्र
भारतीय राजनीति बहुआयामी रही है। कभी ‘जितने दल उतने नेता’ के हालात से गुजरी राजनीतिक व्यवस्था में नए दलों का प्रादुर्भाव और उनका अवसान भी लोगों ने देखा है। उमा भारती से लेकर ताजा हालात में अमरिंदर सिंह इसके साक्ष्य हैं। हाल ही में कांग्रेस छोड़कर अलग हुए गुलाम नबी आजाद ने पार्टी का गठन किया है। आज के दौर में लोगों में राजनीतिक चेतना का विशेष जोश नजर आता है।
लोग दलों के कर्ताधर्ताओं की पृष्ठभूमि देखकर ही उससे जुड़ते हैं। ऐसे में भारतीय राजनीति द्विदलीय व्यवस्था की ओर बढ़ती जा रही है। भले ही आम आदमी पार्टी या तृणमूल कांग्रेस जैसी क्षेत्रीय पार्टियां इसका अपवाद हों, पर केंद्रीय सत्ता के लिए भाजपा का मुकाबला कांग्रेसनीत गठबंधन से ही होना है। मगर यह भी ध्यान रखने की बात होगी कि राजनीति जैसे-जैसे केंद्रीकृत होती जाएगी, लोकतंत्र उतना कमजोर होता जाएगा।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, इंदौर</p>
खतरे की मिलावट
देश में त्योहारों के मौसम के साथ ही मिलावटखोरी का धंधा चरम पर होता है। खाने-पीने के सामान, मिठाई, पनीर, घी, तेल आदि सामग्रियों में पूर्व से ही मिलावट का खेल चल रहा है। सरकार के लचर रवैये, कमजोर कानून और राजनीतिक-प्रशासनिक सांठगांठ की वजह से मिलावटखोरी का दौर बढ़ता चला गया। मिलावटी खाद्य पदार्थों की वजह से लोग मोटापा, मधुमेह, कैंसर, रक्तचाप आदि विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।
कुछ लोग का समय से पूर्व जीवन लीला भी समाप्त हो रहा है। पहले ही रासायनिक खादों और कीटनाशकों से तैयार अनाज की वजह से आम लोगों की सेहत जोखिम में है और लोगों को गंभीर बीमारियां हो रही हैं। ऊपर से हम मिलावटखोरी के जाल में फंस जा रहे हैं।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया