समाज में बहुत सारे ऐसे लोग मिल जाते हैं जो अपने आप को तो बहुत पढ़ा-लिखा मानते हैं, लेकिन उनकी हरकतों को देख कर ऐसा लगता है कि वे शिक्षित होकर भी अशिक्षित ही हैं। अगर केवल सामाजिक बुराइयों की कसौटी पर ही देखें तो हमारे देश में सबसे बड़ी और शर्मनाक सामाजिक बुराई है कन्याभ्रूण हत्या। इसके लिए मात्र अनपढ़ या गरीब लोग ही जिम्मेवार नहीं हैं, बल्कि पढ़े-लिखे लोग भी आज की इस वैज्ञानिक सदी में रूढ़िवादी विचारधारा में जी रहे हैं और बेटियों को दोयम समझते हुए उनसे छुटकारा पाने की कोशिश उसके जन्म लेने से पहले कर देते हैं। इसी के साथ दहेज प्रथा, छुआछूत, जाति आदि सामाजिक बुराइयां सिर्फ अशिक्षित लोगों के कारण नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके लिए अपने-आप को ज्यादा पढ़े-लिखे समझने वाले भी जिम्मेदार हैं। बल्कि ये लोग कई बार अशिक्षितों से ज्यादा कट्टर साबित होते हैं।
किसी लालच में आकर हर चुनाव में अपने कीमती मत को बेचने वालों का आंकड़ा शिक्षित वर्ग का भी कोई कम नहीं होगा। इसी तरह कानूनों को तोड़ने के मामले में भी पढ़े-लिखे लोग ही ज्यादा आगे हैं। छोटे उदाहरणों को देखें तो हैलमेट का प्रयोग न करना, चौराहे पर लालबत्ती की अनदेखी करके आगे बढ़ जाने, महंगी कार चलाते हुए मोबाइल पर बात करना। इस तरह के कानूनों को तोड़ने के लिए अमीर और अपने आपको ज्यादा पढ़ा-लिखा समझने वाले भी पीछे नहीं है।
इसी तरह बात-बात पर गलत शब्दों या गालियों तक का प्रयोग करना पढ़े-लिखे लोग भी अपनी शान समझते हैं। शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि किताबों का ज्ञान हो जाए, बल्कि नैतिकता और आसपास की अच्छी बातों का ज्ञान होने के साथ-साथ इंसानियत का ज्ञान होना भी बहुत जरूरी है। असली पढ़ा-लिखा इंसान वही होता है, जिसके अंदर नैतिकता की भावना हो, इंसानियत हो, समाज में अच्छी शिक्षाओं का प्रसार करे और भौतिकवाद में भी अच्छी तरह खुद जिए और लोगों को भी अच्छी तरह जीने की सलाह दे।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</p>
अनुशासन की राह
अनुशासन के तहत किया गया हर कार्य सबकी सराहना का हकदार होता है। अनुशासन हर व्यक्ति को जिम्मेदार इंसान बनने मे सहायक होता है। अनुशासित व्यक्ति हर काम सिलसिलेवार कर शांतिपूर्ण जिंदगी का अधिकारी बन जाता है। अनुशासन के पहले प्रकार मे आत्मानुशासन यानी स्व के लिए नियंत्रित अनुशासन। यह वह है जिसमें व्यक्ति के किसी भी कार्य में अन्य व्यक्ति का बाध्यकारी दबाव नहीं होता है। अनुशासन पालन करने का दूसरा तरीका बाह्य अनुशासन का होता है। इसमें खुद के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति के दबाव और उसके अधिकारों के कारण माना जाना वाला अनुशासन होता है। दोनों तरह के अनुशासनों का पालन करते हुए ही व्यक्ति तरक्की और सफलता पाता है। जीवन के हर कदम के लिए अनुशासन बहुत महत्त्वपूर्ण होने के साथ मूल्यवान भी है। अनुशासित और सभ्य जन ही स्वस्थ और विकसित राष्ट्र के निर्माण मे सहायक हो सकते हैं।
जीवन की आपाधापी में आज लोग इतने हैरान, परेशान और व्यस्त हैं कि कौन कब कैसे अनुशासन की सीमाओं को पार कर जाता है, पता ही नहीं चलता है। अगर किसी और के द्वारा उनकी छोटी-सी भी गलती को इंगित किया जाता है तो लोग मरने-मारने पर उतर आते हैं। अनेक बार ये आपसी छोटे-मोटे कलह बड़ा रूप लेकर राजनीतिक रंगों मे रंग जाते हैं। बिगड़ता अनुशासन और बेबात के झगड़े कब राजनीति के साथ धार्मिक उन्माद का रूप ले लेते हैं, लोगों को पता ही नहीं चलता है। देश में राजनीति विभिन्न हिस्सों में क्षेत्रीय, जाति और धर्म आधारित हो चली है, जो राजनीति के मानचित्र पर शुभ संकेत नहीं माने जा सकते हैं।
बात-बेबात के धरने, प्रदर्शन, रास्ते बंद, आम जन जीवन को प्रभावित करते हैं। इसके समांतर सरकार भी कई कारणों से ऐसे कदम उठाती है, जिनसे रोज कमा कर खाने वालों, छोटे-मोटे काम, व्यापार करने वालों का जीवन बाधित होता है। अनुशासन के बाहर की गई कोई भी अनुचित मांग, कोई भी हिंसक आंदोलन सफलता की गारंटी नहीं होते हैं। ‘अनुशासन देश को महान बनाता है।’ इस मूल मंत्र को हर देशवासी को याद रखना चाहिए।
’नरेश कानूनगो, बंगलुरु, कर्नाटक