मानव समाज में विवाह संस्कार का बड़ा महत्त्व है। मगर समय के साथ आदमी ने हर परंपरा को अपनी सुविधा और बाजारवाद के हिसाब से अपना लिया है। आजकल की शादियां वास्तविकता कम, वर्चस्व की लड़ाई अधिक हो गई हैं। विवाह स्थलों को देखने से ऐसा लगता है, जैसे किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो। इस पर अच्छी-खासी रकम खर्च होती है, जबकि यही धन हम देश के कई अन्य लाभकारी कार्यों में लगा सकते हैं।

इसके अलावा इन समारोहों में भोजन की बेतहाशा बर्बादी होती है, जिसे देख कर बहुत दुख होता है। भारत जैसे देश में भोजन को अन्न देवता कहा जाता है, अन्नपूर्णा देवी का प्रसाद माना जाता है, उस देश में भोजन की इस तरह बर्बादी निराश करती है। यूएन की फूड वेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया साल भर में एक अरब टन से अधिक खाना बर्बाद करती है। वहीं हर एक भारतीय प्रतिवर्ष पचास किलो खाना जूठा छोड़ देता है। यह प्रकृति के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है।
सौरव बुंदेला, भोपाल</p>

कचरे का निपटान

सूचना प्रौद्यौगिकी क्रांति के इस दौर में आज अधिकतम सेवाएं डिजिटल हो गई हैं। लोगों की सुविधाएं बढ़ गई हैं। लोग नए-नए इलेक्ट्रानिक उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं इनके निष्प्रयोज्य होने पर इनके निपटान का संकट बढ़ता जा रहा है। पुराने और खराब हो चुके इलेक्ट्रानिक उपकरणों, जिसे संक्षेप में ई-कचरा कहा जाता है, हमारे पर्यावरण और प्राकृतिक जीवों के लिए खतरा बनता जा रहा है। इस ई-कचरे में पुराने खराब मोबाइल फोन, टीवी, खिलौने, बिजली के सामान, अन्य घरेलू बिजली चालित उपकरण आदि के अवशिष्ट सम्मिलित हैं।

इनमें से कुछ कबाड़ी खरीद लेते हैं, किन्तु बहुत बड़ी संख्या वाले अन्य कचरों का कोई ग्राहक नहीं होता। अंतत: उन्हें कूड़ेदान में डालने की विवशता होती है। इसका मुख्य कारण है अभी हमारे देश में ई-कचरा निपटान का सुगम तंत्र विकसित न हो पाना है। इसलिए स्वयंसेवी संस्थाओं और इलेक्ट्रानिक कंपनियों को इस समस्या के निराकरण के लिए आगे आने की आवश्यकता है!
महेंद्रनाथ चौरसिया, सिद्धार्थनगर, यूपी

श्रीलंका का हाल

श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पूरी तरह डगमगा चुकी है। इसका कारण चीन का बढ़ता कर्ज है। वहां के राजनेताओं ने हाथ खड़े कर दिए हैं, जो चुनाव के वक्त वादे किए गए, उनसे किनारा कर लिया है, जिसके कारण श्रीलंका की जनता बढ़ती महंगाई, भुखमरी, बेरोजगारी आदि समस्याओं से जूझ रही है। हालांकि श्रीलंका में आर्थिक संकट पहले भी कई बार आ चुका है, लेकिन यह सबसे भयानक है।

श्रीलंका की सहायता के लिए कई बड़े देश आगे आए हैं। भारत ने श्रीलंका की एक अरब डालर की बड़ी सहायता की है। मगर इस राशि से एक देश को चलाना बहुत मुश्किल है। कोई भी देश श्रीलंका की सहायता कब तक करेगा। श्रीलंका पहले ही चीन के कर्ज से दबा हुआ है, जिससे वह विदेश व्यापार करने में भी असमर्थ है।
नोमान अहमद खान, दिल्ली</p>