शिक्षण संस्थान ज्ञान प्राप्ति का स्थान हैं, न कि विवाद का। अचानक बुर्का और हिजाब क्यों? आखिर इसे विवाद का विषय क्यों बनाया जा रहा है? पिछले कई दिनों से देखा जा रहा है कि कर्नाटक में कई मुसलिम छात्राएं उडूपी स्कूल में हिजाब पहन कर आ रही हैं। इसी के चलते हिंदू छात्रों ने भगवा रंग का गमछा पहन कर आना शुरू किया। अब कोई जय श्रीराम के नारे लगा रहा है तो कोई अल्लाहू अकबर कह रहा है। पर सोचने की बात यह है कि अचानक स्कूल और कालेजों में बुर्का क्यों? स्कूल यूनिफार्म इसीलिए लगाया जाता है, ताकि सभी विद्यार्थी समान दिखें और किसी के मन में भी किसी और के पहनावे को देख खुद को नीचा होने का भाव न आए।
अगर कोई बुर्का, भगवा गमछा या फिर अपने धर्म का प्रचार करने के लिए स्कूल में ये सब पहन के जाएं, तो इस चीज को बिलकुल भी बढ़ावा न दिया जाए। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि जब सिख धर्म के लोग पगड़ी पहन सकते हैं, तो बाकी लोग हिजाब और बुर्का क्यों नहीं पहन सकते। मगर सिख धर्म में पगड़ी उनके प्रतीकों में शामिल है। पर इस्लाम में हिजाब पहनने के लिए ऐसा कुछ नहीं कहा गया है।
सबको अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने की अनुमति है, लेकिन कहां और किस समय यह भी सोचने का विषय है। अगर किसी को अपने धर्म की पढ़ाई करनी हो तो उसके लिए भी संस्थान हैं, आप वहां पर जाकर पढ़ाई कर सकते हैं। किसी स्कूल में वहां के यूनिफार्म होने के बावजूद उसका पालन न करना और अपने हिसाब से क्या पहनाना है, यह तय करना बहुत ही गलत बात है।
- स्मिता उपाध्याय, नागपुर, महाराष्ट्र
झूठे का बोलबाला
आज की राजनीति में झूठ लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसा लगता है कि राजनीति और झूठ में चोली-दामन का साथ है। नेता जब तक दिन में कई झूठ न बोल ले, तब तक उसकी राजनीतिक रोटियां नहीं पकती हैं। महर्षि वेदव्यास ने पांच स्थितियों में झूठ बोलने को पाप नहीं माना है। विवाह काल में, प्रेम प्रसंग में, किसी के प्राणों पर संकट आने पर, सर्वस्व लुटते देख कर तथा किसी ज्ञानी या विद्वान व्यक्ति के लिए आवश्यकता होने पर झूठ बोला जा सकता है। मगर नेताओं पर ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता। वे जब चाहें, जैसा चाहें, जितना चाहें झूठ बोलने के लिए स्वतंत्र हैं।
नेता इतनी सफाई से, इतने प्रभावशाली ढंग से झूठ पेश करते हैं कि जनता मंत्रमुग्ध होकर उसी को सच मान बैठती है। जनता झूठे नेताओं द्वारा बार-बार ठगी जाती है और विकल्पों के अभाव में एक झूठ को ठुकरा कर दूसरे झूठ के पीछे चली जाती है। लोकतंत्र के गौरवशाली इतिहास वाले समाज में झूठ बोलने वाले नेता लोगों की पहली पसंद कैसे बन जाते हैं? सत्य की हत्या का प्रयास करने वालों के प्रति जनता का प्रेम आखिर क्यों उमड़ता है? यह शोध का विषय है कि एक व्यक्ति कांच के टुकड़े को बहुमूल्य नगीना बताता है और लोग सहज भाव से उसके झूठ को सच के रूप में स्वीकार कर लेते है- आखिर क्यों?
अब लोगों का जागरूक होना बहुत जरूरी हो गया है। जनता को सभी तथ्यों को परखना पड़ेगा, ताकि सच्चाई के सहारे गलत को गलत और सही को सही कहा जा सके। क्या लोग मतदान करने से पहले पूरी समझदारी और सब बातों का अवलोकन करके निर्णय करते हैं? हम सभी को अपने मत का मूल्य समझना चाहिए।
- सौरभ कांत, दिल्ली</li>