पाकिस्तान लगातार तीसरे साल भी फाइनेंशियल टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ की काली सूची से बाहर नहीं आ सका है। उसने अभी तक एफएटीएफ के सभी मानदंडों को पूरा नहीं किया है। एफएटीएफ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो धनशोधन और आतंकी संगठनों को वित्तीय मदद जैसे मामलों में दखल देते हुए तमाम देशों के लिए दिशा-निर्देश तय करती है।
अगर कोई देश एफएटीएफ की काली सूची में रखा जाता है, तो उस पर निगरानी रखी जाती है। कर्ज लेने के पहले बेहद सख्त शर्तों को पूरा करना पड़ता है। वहीं दूसरी ओर जब साबित हो जाता है कि किसी देश से आतंकी गतिविधियों को वित्तीय मदद और धनशोधन हो रहा है, और वह इन पर लगाम नहीं कस रहा, तो उसे काली सूची में डाल दिया जाता है। इस सूची में आने के बाद कोई भी वित्तीय संस्था आर्थिक मदद नहीं देती, बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना कारोबार समेट लेती हैं। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर पहुंच जाती है।
पाकिस्तान के हालात अगर ऐसे ही बने रहे तो उसकी मुसीबत बढ़नी तय है। पहले ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कंगाली की ओर अग्रसर है। पाकिस्तान के साथ उसके बेहद करीबी मित्र तुर्की को भी काली सूची में डाल दिया गया है। एफएटीएफ ने शर्तें पूरी करने का समय दोनों को दिया, मगर दोनों ने कोई सख्त कदम नहीं उठाए, जिसका खमियाजा दोनों को काली सूची में बने रहना है!
’विभूति बुपकिया, आष्टा, मप्र
भारत की जमीन पर नजर
संपादकीय ‘चीन के कदम’ (21 अक्तूबर) पढ़ा। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत भारत की धरती पर नजर गड़ाए है। अभी लद्दाख सीमा पर विवाद समाप्त भी नहीं हुआ है और चीन का अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम की सीमा पर सेना की गतिविधि बढ़ाना चिंताजनक है। अरुणाचल की सीमा के समीप चीन ने पक्का निर्माण भी कर लिया है।
गलवान घाटी की खूनी झड़प के बाद अब चीन को यह अहसास हो चुका है कि यह 1962 का भारत नहीं है। भारत ने भी अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम सीमा पर सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद भारत-चीन सीमा विवाद शुरू हो गया। इसे सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच कई बार वार्ता हुई, लेकिन चीन कभी सीमा विवाद सुलझाना ही नहीं चाहता है। उसकी बढ़ती महत्त्वाकांक्षा पूरी दुनिया के लिए खतरनाक है। भारत-चीन सीमा विवाद का हल तिब्बत की आजादी में छिपा हुआ है। जब तक तिब्बत चीन के चंगुल से आजाद नहीं होगा, तब तक दोनों देशों का सीमा विवाद चलता रहेगा।
’हिमांशु शेखर, गया, बिहार</p>