अफगानिस्तान में तालिबान का बढ़ता वर्चस्व विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए शुभ संकेत नहीं है, विशेषकर इस परिस्थिति के मद्देनजर कि जिस कदर तालिबान की कट्टरता के दर्शन एक दौर में पूरी दुनिया कर चुकी है। दस साल अफगानिस्तान में रह कर सोवियत संघ लौट गया था। आज बीस साल अमेरिका वहां रह कर खाली हाथ लौट गया। अमेरिका के अफगानिस्तान से लौटने के बाद से तालिबान की शक्ति दिनों दिन बढ़ती जा रहा है।
अहम बात यह भी है कि भारत जैसे देशों ने जिस तरह एक उम्मीद भरी दृष्टि से अफगानिस्तान में पूंजी का निवेश किया, उसके बाद यदि शांति को छोड़ कर संघर्ष एवं हिंसा का वातावरण बनता है तो आने वाले दिनों में न केवल अफगानिस्तान बल्कि शांति के परिप्रेक्ष्य में बहुत बड़ी चुनौती होगी। भारत की कूटनीति की अग्नि परीक्षा यहां पर हो रही है। विशेष कर इस बात के मद्देनजर कि तालिबान को पाकिस्तान और चीन द्वारा खुल कर सहयोग दिया जा रहा है। तालिबान अफगानिस्तान का आंतरिक मुद्दा है और भारत इस पर सक्रिय रूप से कुछ नहीं कर सकता। वहीं न चाहते हुए भी अफगानिस्तान में शांति बहाली एवं मधुर संबंध स्थापित करने को लेकर तालिबान को स्वीकृति देना सहज तो नहीं है, पर इस मजबूरी का कोई विकल्प भी नहीं दिखता है। लेकिन एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते कट्टरता को मंजूरी भी कदापि नहीं दी जा सकती।
’मिथिलेश कुमार, भागलपुर
मीडिया को धमकाना
जब कोई भी व्यक्ति सिविल सेवा परीक्षा या अन्य प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा होता है तो उसे अक्सर सही जानकारी प्राप्त करने के लिए विशेषज्ञ अंग्रेजी माध्यम वालों को द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस जैसे अंग्रेजी समाचार पत्रों को पढ़ने को कहते हैं। साथ ही दैनिक भास्कर जैसे हिंदी अखबार भी। क्योंकि अक्सर इन समाचार पत्रों में पुष्ट जानकारी मिलती है बिना किसी भेदभाव के। हाल में आयकर विभाग ने उत्तर प्रदेश में भारत समाचार नाम के चैनल के परिसर में और दैनिक भास्कर के परिसर में छापे मार कर इनको डराने का काम किया है। जबकि भारत समाचार चैनल ने उत्तर प्रदेश में आक्सीजन और अन्य कोरोना कालीन मुद्दे पर साहसपूर्ण रिपोर्टिंग की है और दैनिक भास्कर ने भी उत्तर प्रदेश से गंगा नदी के किनारे से लेकर बिहार तक कोरोना से हुई मौतों का सच दिखाया है। इससे कहीं ना कहीं सरकार कि छवि को नुकसान हुआ है। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब मीडिया असलियत दिखाता है तो उसे ऐसे क्यों डराने की कोशिश की जाती है क्या इससे कुछ मिल सकता है सरकार को?
’गोलू सौंदर्य, आजमगढ (उप्र)
जिनपिंग का तिब्बत दौरा
राजनीतिक रूप से अशांत क्षेत्र तिब्बत का दौरा करके चीन के राष्ट्रपति भारत को क्या संदेश देना चाह रहे हैं? यह सवाल इस समय पूरे विश्व में गूंज रहा है। शुक्रवार को शी जिनपिंग अरुणाचारल प्रदेश से सटे नियांगची पहुंचे। वहां उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहे बांध का जायजा लिया। उस बांध क्षेत्र भी गए जिसका भारत शुरू से विरोध कर रहा है। सबसे बड़ी बात यह कि वहां के आम नागरिकों ने गर्मजोशी के साथ राष्ट्रपति का स्वागत किया। इसका मतलब यह हुआ कि 1951 का तिब्बत का विलय एक हकीकत बन चुका है? ऐसे में भारत में रह रहे दलाई लामा और उनके अनुयायी अब क्या करेंगे? क्या अब वे कभी वापस अपने वतन लौट पाएंगे? क्या भारत का विरोध भी अब कागजी ही रह जाएगा? ऐसे ही कई सवालों को हवा में उड़ता छोड़ गए सी जिनपिंग।
’जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर