मिग-21, मिराज और जगुआर जैसे पुराने युद्धक विमानों को बदलने के लिए सरकार कई योजनाओं पर काम कर रही है। जैसे स्वदेशी तेजस की खरीद या विदेशों से बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान खरीदना और पांचवी-छठी पीढ़ी के उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान विकसित करना आदि। सिर्फ युद्धक विमान ही नहीं, सेना के पास मौजूद 186 चेतक और 200 से अधिक चीता हेलीकाप्टर भी 40 साल से अधिक पुराने हैं और इन्हें भी बदलने की आवश्यकता है। हेलीकाप्टरों के पुराने बेड़े को स्वदेशी हल्के यूटिलिटी हेलिकाप्टर से बदलने की योजना है।
विदेशों से खरीद को छोड़कर सरकार की इन सारी योजनाओं को अमली जामा पहनने की जिम्मेदारी इकलौते हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड के कंधों पर है। तेजस, हल्के लड़ाकू हेलिकाप्टर, हल्के यूटिलिटी हेलीकाप्टर, टर्बो ट्रेनर-40, बुनियादी प्रशिक्षण विमान, सुखोई जैसे विमान तथा पीएसएलवी और जीएसएलवी राकेट जैसे अनेक उत्पादों के निर्माण और विकास से जुड़ा हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड लेट-लतीफी और प्रोजेक्ट को लटकाने के लिए मशहूर है।
इसकी मुख्य वजह है उड्डयन उत्पादों के उत्पादन और विकास में एचएएल का एकाधिकार। मजे की बात ये है कि जो एचएएल देश की जरूरतों को भी समय से पूरा नहीं कर पा रही सरकार उसके दम पर युद्घक विमानों और हेलीकाप्टर के निर्यात का सपना देख रही है। इन हालात में रक्षा उपकरणों के विकास और उत्पादन में संबंधित कंपनियों की जवाबदेही और समय पर काम पूरा करने के लिए उचित व्यवस्था किए बिना आत्मनिर्भर और सुरक्षित होना मुश्किल है।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, यूपी</p>
आजादी बनाम व्यवस्था
हमारा सामाजिक ताना-बाना आज भी कैसा है? एक व्यक्ति जो बुनियादी शिक्षा प्राप्त नहीं कर सका, वह व्यक्ति कितना स्वतंत्र है, क्योंकि वह अब किसी और पर निर्भर है। सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता के बिना हमारी स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। प्रक्रिया जारी है और हमें उस दिशा में काम करना चाहिए। भारत में आज भी 23 फीसदी ग्रामीण आबादी को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है।
अगर इसे जनसंख्या के लिहाज से देखें तो यह आंकड़ा 21 करोड़ है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो उसके हिसाब से देश में करीब 71 करोड़ ग्रामीणों को प्रतिदिन 40 लीटर पानी मिल रहा है। 18 करोड़ को प्रतिदिन 40 लीटर से कम पानी मिल रहा है। जबकि तीन करोड़ ग्रामीणों के लिए जो पानी उपलब्ध है, उसकी गुणवत्ता खराब है। कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, शिक्षा का अभाव, घर का अभाव, भूमिहीन की समस्या आदि आजादी के मकसद पर सवाल खड़ा करता है।
राज्य स्तर पर देखें तो बिहार की स्थिति सबसे खराब है, जहां करीब 3 करोड़ 77 लाख लोगों को पीने का 40 लीटर से भी कम पानी उपलब्ध है। जबकि वहां 33 लाख से ज्यादा लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। इसके बावजूद कुछ लोग यह कहने से नहीं चूकते कि ‘सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है, दिल पर रख कर हाथ कहिए देश क्या आजाद है।’ एक आदमी भूखा-नंगा, देख रहा है आज तिरंगा, उसे देखने की आजादी।
कड़वी सच्चाई यह है कि भले ही हमें गोरे अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिल गई हो पर अभी भी हमें इस दिशा में लंबा सफर तय करना बाकी है। इसलिए हमें चाहिए सामाजिक और आर्थिक स्तर पर अलग-अलग तरह की जटिल बनाने वाले रिवायतों से आजादी। फासीवाद और पूंजीवाद से आजादी। आजादी का मतलब व्यवस्था परिवर्तन से है। समानता, बंधुता, समरसता, भाईचारा जरूरी है। तभी हम आजादी के लक्ष्यों को हासिल कर सकेंगे।
प्रसिद्ध यादव, बाबूचक, पटना</p>