पिछले कुछ दिनों से देश के कुछ राज्यों के लोग गर्मी से परेशान हैं। यहां कुछ लोग अखबारों में मौसम की जानकारी प्राप्त कर रहे, कुछ मोबाइल-टीवी पर मौसम विभाग की रिपोर्ट प्राप्त कर यह जानने की कोशिश कर रहे कि आखिर कब आसमान से गर्मी से राहत दिलाने वाली बूंदें बारिश की बरसेंगी। कई बार तो जिस दिन भरपूर बारिश होने की उम्मीद मौसम विभाग के माध्यम से बताई जाती है, उस दिन भी बारिश नहीं होती। यह कम बारिश का सिलसिला मात्र कुछ राज्यों में ही नहीं, बल्कि देश के अन्य कुछ राज्यों में भी बरकरार है। कम बारिश से देश के कुछ राज्य सूखे की चपेट में भी आ गए हैं और मौसमी फसलों पर बर्बादी के बादल छा रहे हैं। लेकिन शायद यह कोई नहीं जानने की कोशिश नहीं करता कि आखिर बरसात के मौसम के अपनी रवानी पर होने के बावजूद बारिश कम या नाममात्र की ही क्यों हो रही? अगर बबूल के पेड़ बोएंगे तो फिर मीठे आमों की उम्मीद उन पेड़ों से करना समझदारी नहीं है।

बारिश कम होने का कारण प्रकृति की नाक में दम करना है। हर कोई यह जानता है कि पेड़ बारिश लाने में सहायता करते हैं। फिर भी पेड़ों को काटने का सिलसिला हर कोई किसी न किसी कारण बरकरार रखे हुए है। 1970 के दशक में पर्यावरण की चिंता करते हुए गढ़वाल के लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए जिस तरह ‘चिपको आंदोलन’ आरंभ कर दिया था, अब फिर समय आ गया है कि पर्यावरण को संभालने और भरपूर बारिश के लिए वैसा आंदोलन चलाया जाए। पेड़ों का होना प्रकृति के सहज बर्ताव से लेकर हमारे जीवन तक के सहज रहने का कारण है। इसलिए पेड़ बचाए बिना हम प्रकृति के सामान्य मौसम की उम्मीद नहीं कर सकते।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</p>

भुखमरी के समांतर

वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2020 के अनुसार जहां एक तरफ भारत में भुखमरी पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका से भी ज्यादा है, वहीं एक खबर यह आई कि सरकार ने गरीबों का राशन निजी क्षेत्रों को दे दिया। सरकार ने मेथेनॉल बनाने के लिए गरीबों के लिए निर्धारित 78000 टन चावल को निजी क्षेत्रों को सबसिडी पर देने का निर्णय लिया। यह चावल किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर एफसीआइ द्वारा खरीदे गए थे, जिसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के तहत गरीबों को दिया जाना था। एक ओर जहां राज्यों को पीडीएस के अतिरिक्त चावल खरीदने के लिए बाईस सौ रुपए प्रति टन देने पड़ते हैं वहीं सरकार ने मेथेनॉल बनाने के लिए केवल दो हजार रुपए प्रति टन पर चावल बेचने का निर्णय लिया है। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार की प्राथमिकता क्या है!

पिछले साल सरकार ने नया मेथेनॉल नीति लागू किया, जिसके तहत खाद्यान्न फसलों का उपयोग मेथेनॉल बनाने के लिए किया जाएगा। जानकारों द्वारा इसका भारी विरोध किया गया। सरकार ने सन 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसद तक मेथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य रखा है, ताकि पेट्रोल का आयात कम हो। यह नीति अच्छी है, लेकिन मेथेनॉल का उत्पादन गैर खाद्यान्न वाले पौधों जैसे जेट्रोफा, पराली आदि से किया जा सकता है। कोरोना की वजह से एक तरफ लाखों भारतीय गरीबी रेखा के नीचे चले गए, कुपोषण और भुखमरी चरम पर है, वहीं सरकार का यह निर्णय निश्चित तौर पर खाद्यान्न संकट को और बढ़ाएगा तथा भुखमरी में वृद्धि होगी। सरकार को ऊर्जा उत्पादन के अन्य तरीकों पर ध्यान देना चाहिए।
’गंगाधर तिवारी, लखनऊ, उप्र