विश्व संसाधन संगठन (डब्ल्यूआरआइ) के मुताबिक भारत बाढ़ से प्रभावित होने वाली आबादी के आधार पर 163 देशों की सूची में शीर्ष पर है। यहां हर वर्ष करीब 50 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित होते हैं, औसतन 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें नष्ट हो जाती हैं और जीडीपी में 14.3 अरब डॉलर का नुकसान होता है। केंद्र सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार 1953 से 2017 के बीच 64 वर्षों में बाढ़ से एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में चार करोड़ हेक्टेयर यानी कुल भू-भाग का बारह प्रतिशत हिस्सा बाढ़ और नदी कटाव से प्रभावित है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग आठवां भाग है। इन आंकड़ों से जाहिर होता है कि बाढ़ महज प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि हमारे देश के लिए गंभीर पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक संकट का कारक भी बन चुकी है।
भारत में सामान्यत: बाढ़ के लिए चरम मौसमी परिवर्तनों को दोष दिया जाता है लेकिन इसके लिए केवल प्रकृति को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। उत्तराखंड के संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में की गई अंधाधुंध विकास गतिविधियों कारण भारी तबाही हुई थी। इसी तरह चेन्नई में नदियों पर अतिक्रमण किया गया और झीलों के विकास को अवरुद्ध किया गया, तालाब पाट दिए गए। उनके स्थान पर बहुमंजिला अपार्टमेंट्स और मॉल खड़े हो गए। इन सभी कारणों से भारी बारिश के पानी की निकासी नहीं हो पाई और चेन्नई शहर विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आ गया। केरल की बाढ़ के कारणों की पड़ताल करें तो भारी वर्षा के अलावा जलाशयों के अत्यंत खराब प्रबंधन, पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में तमाम तरह के अवैध निर्माण-कार्य, खनन व वनों के विनाश ने बाढ़ को ज्यादा विकराल और विनाशकारी बना दिया। एक अनुमान के मुताबिक पिछले 40 सालों में इस संवेदनशील क्षेत्र में पड़ने वाले राज्य के करीब 9000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में वनों का पूर्णत: विनाश कर दिया गया। इसका परिणाम अपरदन में वृद्धि, मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता में कमी, नदियों में गाद की मात्रा में वृद्धि, तापमान में बढ़ोतरी आदि के रूप में देखने को मिला।
ऐसे में नीति-निर्माताओं के बीच यह सवाल अब अहम होना चाहिए कि आर्थिक विकास किस तरह का हो? क्या विकास की नई बयार के बीच नदियों से लेकर ताल-पोखरे नष्ट होते रहें, जंगल कटते रहें और वन्य जीव समाप्त होते रहें, इस तरह के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाना चाहिए या फिर टिकाऊ विकास हो और हमारा पर्यावरण भी बचा रहे! अगर हम दूसरे विकल्प को चुनते हैं तो ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो पर्यावरण व विकास के बीच संतुलन स्थापित करें। दरअसल, बाढ़ प्राकृतिक आपदा तो है लेकिन दोषपूर्ण विकासात्मक नीतियों के कारण इसका स्वरूप विकराल हो गया है। हालांकि इस पर नियंत्रण का कार्य कठिन होते हुए भी, दुर्जेय नहीं है। सुव्यवस्थित आयोजन और कार्यनीतियों द्वारा बाढ़ जैसी आपदा से निपटा जा सकता है।
तेजी से बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए सभी शहरों की जल-मल निकासी व्यवस्था और कचरा प्रबंधन को नए स्तर पर ले जाने की जरूरत है। इसके अलावा बाढ़ नियंत्रण के अब तक के उपायों की सीमाओं के मद्देनजर बाढ़ नियंत्रण संबंधी वैकल्पिक नीति बनाना जरूरी है। साथ ही, देश के सभी बाढ़-उन्मुख क्षेत्रों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के सकेंद्रित दृष्टिकोण की भी आवश्यकता है।
कैलाश एम बिश्नोई, जोधपुर
अंधी होड़: आंकड़ों के मुताबिक भारत सबसे अधिक युवाओं वाला देश है लेकिन इस युवा शक्ति का दिशाहीन होना हमारी विफलता है। तकनीक और आधुनिकीकरण की होड़ में युवा ऐसे लिप्त हैं जैसे व्यसनी व्यसन में। नैतिकता और संस्कार इसके ‘कूल’ और ‘डूड’ होने की होड़ में अपने अस्तित्व की गुहार लगा रहे हैं।
संचार क्रांति के इस युग में जहां सूचनाओं का अंबार है वहां युवा अपनी अथाह सामर्थ्य से परिचित नहीं हैं। आज का युवा महज साक्षर है, शिक्षित नहीं। अपनी हर गलती या चूक का ठीकरा हम सरकार के सिर नहीं फोड़ सकते। समाज को संगठित, जागरूक और ओजस्वी युवाओं की जरूरत है। इस बार शत्रु हमारा आलस्य, पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण, सिमटे मूल्य और अत्यधिक आधुनिकीकरण है। संचार क्रांति में आज ‘फ्री डाटा’ नहीं बल्कि ‘फ्री व्यक्ति’ है। युवाओं को अंधी होड़ का हिस्सा न बन कर स्वनिर्माण और राष्ट्र निर्माण में सहयोग करना चाहिए।
प्रगति जैन, इंदौर</strong>
यादगार शतक: भारत और न्यूजीलैंड के बीच महिला टी-20 मुकाबले में हरमनप्रीत कौर ने शतक लगाकर ऐसा कारनामा कर दिखाया जो भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। टी-20 मैचों में महज 51 गेंदों में ताबड़तोड़ शतक लगाकर हरमनप्रीत भारत की पहली और दुनिया की नौवीं शतकीय बल्लेबाज बनीं। उनके इस शतक ने साबित कर दिया कि आज की लड़कियां लड़कों को पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी टक्कर देने और उनसे आगे रहने की क्षमता रखती हैं। हरमनप्रीत का यह शतक इसलिए भी खास है कि पुरुष क्रिकेट में भी किसी कप्तान बल्लेबाज ने इतनी कम गेंदों पर शतक नहीं लगाया है।
बेशक अभी भी भारतीय महिला क्रिकेट टीम को पुरुष क्रिकेट टीम की तुलना में लोकप्रिय बनाया जाना बाकी है लेकिन ऐसी यादगार पारियां एक दिन हमारी महिला क्रिकेट टीम को ऊंचे मुकाम पर अवश्य ले जाएंगी। बीसीसीआई और केंद्र व प्रदेशों की सरकारों को महिलाओं को खेलों में आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक मदद करनी चाहिए क्योंकि आज भी पुरुषों की तुलना में महिला क्रिकेटरों को कम राशि दी जाती है।
अखिल सिंघल, नई दिल्ली
सेल्फी ब्रिज: दिल्ली में सिग्नेचर ब्रिज लोगों को यातायात जाम से मुक्ति दिलाने के लिए बनाया गया था पर यह खतरनाक ‘सेल्फी प्वॉइंट’ बनता जा रहा है। यहां बड़ी संख्या में लोग अपनी जान की परवाह किए बिना परिवार और बच्चों के साथ खतरनाक जगहों पर खड़े होकर सेल्फी लेते रहते हैं। ये पुल पर जाम लगाने के अलावा खाने-पीने की चीजों के खाली पैकेट वगैरह फेंक कर गंदगी भी फैला रहे हैं। इस पुल पर कुछ वाहन चालक बहुत तेज रफ्तार से गाड़ियां दौड़ाते हैं जो जानलेवा दुर्घटनाओं को न्योता देना साबित होता है। इस पुल पर साफ सफाई और सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए जाने चाहिए।
महेश कलोसिया, संगम पार्क, दिल्ली
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