पराली प्रबंधन के तमाम उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं। बकायदा इसे तस्दीक कर रही हैं नासा के उपग्रह मोडिस द्वारा भेजी गई तस्वीरें। हालांकि अब इसमें कमी जरूर आई है। फसल अवशेष जलाना भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1981 के तहत अपराध है। फसलों के अवशेष जलाने की समस्या साल में दो बार आती है।
गेहूं की फसल के अवशेष जलाते समय गर्मियों की शुरुआत और हवा के तेज बहाव के कारण धुएं बिखर जाते हैं। मगर धान के अवशेष जलाते वक्त सर्दियों की शुरुआत और मंद हवा के कारण कम ऊंचाई पर इसकी एक परत बन जाती है, जो काफी नुकसानदेह होती है। यह सांस संबंधी रोगियों के लिए तकलीफदेह ही नहीं होती, बल्कि वायु प्रदूषण के कारण लोगों में रोगों से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है। इससे निपटने के लिए अनेक तरह के एंटीबायोटिक दवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं, जिसका कुप्रभाव मानव शरीर पड़ता है।
दूसरी अहम बात है कि पराली जलाने से धरती के एक सेंटीमीटर तक गर्मी समा जाने से फसल के लिए लाभदायक मित्र कीट मर जाते हैं। शत्रु कीट हमलावर हो जाते हैं। नतीजतन किसानों को उससे निपटने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है, जो कैंसर का प्रमुख कारण हैं। अब सवाल उठता है कि इससे बचने का उपाय क्या है? जवाब है, फसल विविधता को अपनाना। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जलाभाव वाला क्षेत्र है। इन स्थानों में धान की फसल बोने की कोई आवश्यकता नहीं है।
भारतीय भूभाग भौगोलिक विविधता से भरा-पूरा है। मानसून के समय अधिकांश पूर्वोत्तर वाले हिस्से में काफी मात्रा में पानी मौजूद रहता है। धान की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। ऐसे में धान की फसल उन्हीं क्षेत्रों में बोई जानी चाहिए, जहां पानी अधिक मात्रा में उपलब्ध है।
आज शहर हो या गांव, यहां तक कि अब अमीर लोग ही खानपान की गलत शैली के कारण पोषकता की कमी का सामना कर रहे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विशेषज्ञ मोटे अनाजों को भोजन में शामिल करने की सलाह दे रहे हैं। लिहाजा, किसानों को चाहिए कि धान की फसल के बजाय, विशेषकर वहां के किसान, जहां जल की कमी है, मोटे अनाज उगाने को तवज्जो दें। बाजार में इसकी मांग अधिक है। उसकी कीमत उसे अधिक मिलने की संभावना है। मगर इसके लिए किसान को राजी करना टेढ़ी खीर है। सरकार को यह काम हाथ में लेना चाहिए।
’मुकेश कुमार मनन, पटना</p>
कुपोषण की मार
देश में कुपोषण एक राष्ट्रीय समस्या बन चुका है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021 में 116 देशों की सूची में भारत का 101 वें स्थान पर पहुंच जाना बेहद निराशाजनक है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की पंद्रह फीसद आबादी अल्पपोषित है। यह अजीब विडंबना है कि जो देश खाद्यान्न और दूध उत्पादन में दुनिया में अव्वल है, जहां सरकारी गोदामों में अनाज सड़ रहे हैं, उसी भारत देश में दुनिया के सर्वाधिक कुपोषित बच्चे हैं। एक ओर सरकार कुपोषण दूर करने के लिए मध्याह्न भोजन और मुफ्त राशन जैसी योजनाएं चला रही है, लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से उन जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है।
कुपोषण की समस्या का सीधा संबंध गरीबी और बेरोजगारी से है। कोरोना काल के दौरान देश में गरीबी और बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। बढ़ती महंगाई भी कुपोषण की समस्या को और बढ़ा रहा है। अगर लोगों को बेहतर रोजगार उपलब्ध हो, उनकी आय में वृद्धि हो और उनके बीच शिक्षा का प्रसार हो तो कुपोषण की समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया