अमेरिकी संस्थान ‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ की हाल में जारी ‘एयर क्वालिटी ऐंड हेल्थ इन सिटीज’ रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की हवा पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित है। वहीं दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता है। इस अध्ययन में 2010 से 2019 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। कुछ दिन पहले शिकागो यूनिवर्सिटी की ‘एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स’ रिपोर्ट जारी हुई थी, उसमें बताया गया था कि भारत की राजधानी दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है।
इस प्रदूषित हवा की वजह से दिल्ली में रहने वाले लोगों की जिंदगी दस साल छोटी हो रही है। शिकागो यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1998 के मुकाबले वायु प्रदूषण 61.4 प्रतिशत बढ़ चुका है। इस वायु प्रदूषण से दिल की बीमारियां, फेफड़ों का कैंसर और सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं, जिसके चलते वातावरण को साफ रखने और वायु प्रदूषण घटाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने की जरूरत है, क्योंकि वायु प्रदूषण अंतररराष्ट्रीय स्तर का चिंतनीय विषय बना हुआ है।
संजू तैनाण, हनुमानगढ़, राज.
समाज का दायित्व
अगर हम किसी राष्ट्र में बड़े बदलाव की आशा रखते हैं, तो देखना होगा कि उस राष्ट्र के समाज का बदलाव में सहयोग का प्रतिशत क्या है। समाज के सहयोग के बिना हम किसी भी कल्याणकारी और महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते। हम बदलावों के लिए के लिए केवल सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। कुछ जिम्मेदारी समाज को भी लेनी होगी। आज हमारे राष्ट्र के सामने कुछ बड़ी चुनौतियां हैं, जिसके लिए समाज को आगे आकर सहयोग करना चाहिए। पहली चुनौती देश में बढ़ता जातिवाद है।
यह समस्या केवल समाज को छिन्न-भिन्न नहीं करती, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक रूप से भी क्षति पहुंचाती है। इसलिए समाज को जातिवाद से ऊपर उठ कर बंधुत्व का विचार अपनाना होगा। हम सुनते रहते हैं कि समाज में किसी विशेष वर्ग के द्वारा किसी विशेष वर्ग के साथ लिंग के आधार पर, धर्म के आधार पर, स्थान के आधार पर, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक आधार पर भेदभाव किया जाता है, जिसके चलते हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि धूमिल होती है और कल्याणकारी राज्य की स्थापना का सपना भी प्रभावित होता है।
इसके अलावा महिला सुरक्षा की चुनौती है। अक्सर कहा जाता है कि इसके लिए सरकारों को प्रयास करना चाहिए। मगर समाज अच्छी तरह जानता है कि महिलाओं पर किए जाने वाले अपराध सरकार नहीं, बल्कि खुद समाज करता है। हम भले ही महिला सुरक्षा को लेकर कितने दावे करते आ रहे हों, लेकिन यह सवाल आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है कि हम महिलाओं को सुरक्षा उस अनुपात में नहीं दे पाए हैं, जिसकी वे हकदार हैं। उनकी उपेक्षा हमेशा होती रही है। चौथी समस्या जलवायु परिवर्तन की है।
आज यह समस्या पूरे विश्व के सामने मुंह बाए खड़ी है और हमने देखा है कि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास किए गए, लेकिन फिर भी आशा के मुताबिक परिणाम देखने को नहीं मिले क्योंकि ये प्रयास कहीं न कहीं कागजी थे। मगर एक जनसमूह, एक समाज मिलकर चाहे तो इस समस्या को काफी हद तक रोक सकता और अपनी पीढ़ियों को सुरक्षा दे सकता है। बढ़ते जलवायु परिवर्तन को रोकना किसी एक व्यक्ति, एक सरकार, एक संस्था, की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वह इसके लिए हर प्रकार से, हर स्तर पर अपना योगदान सुनिश्चित करे।
पांचवी समस्या शिक्षा व्यवस्था को लेकर है। हमें अपनी पीढ़ी को औपचारिक शिक्षा देने के साथ-साथ संस्कारवान भी बनाना होगा, तभी जाकर वह अपराध, धूम्रपान, मादक पदार्थों का सेवन, अनैतिक कार्यों से दूर रह पाएंगे। वे समाज में बंधुत्व के विचार को स्थापित कर पाएंगे। अपनी विरासत, अपने पूर्वजों, अपने गुरुजनों, नारी और राष्ट्र का सम्मान कर पाएंगे। किसी ने कहा है कि हर शिक्षित व्यक्ति संस्कारवान नहीं होता, लेकिन हर संस्कारवान व्यक्ति शिक्षित जरूर होता है। अंतिम चुनौती, हमने पिछले कुछ दशकों में देखा है कि समाज जरूरत से ज्यादा उपभोक्तावादी हो चला है। वह केवल और केवल भौतिक सुखों को प्राथमिकता देने लगा है, इसीलिए समाज में अब रिश्ते भी आर्थिक स्तरों, निजी हितों पर आधारित होने लगे हैं।
सौरव बुंदेला, भोपाल</p>