अब वह समय नहीं रहा, जब राजनीति को एक पवित्र और सेवा भाव क्षेत्र समझा जाता था। हमारे देश ने सैकड़ों वर्षों के बाद सन् 1947 में अंग्रेजी दासत्व से आजादी पाई थी। आजादी के समय देश के सभी नेताओं ने गांधीजी के स्वप्न को साकार करने का संकल्प किया था, पर वर्तमान में भारतीय राजनीति का अपराधीकरण जिस तीव्र गति से बढ़ रहा है, इसे देखते हुए कोई भी कह सकता है कि हम अपने लक्ष्य से पूर्णतया भटक चुके हैं। बढ़ते अपराधीकरण के कारणों को खोजने और उसका निदान ढूंढ़ने की कोशिश में सर्वप्रथम हम पाते हैं कि हमारे देश की चुनाव प्रक्रिया में भी सुधार की आवश्यकता है।
देश की राजनीति में धन व शक्ति का बोलबाला है। एक आकलन के अनुसार सामान्यत: नब्बे फीसद से भी अधिक हमारे नेतागण या तो अत्यधिक धनाढ्य परिवारों से होते हैं या फिर उनका संबंध अपराधी तत्त्वों से होता है। गुणवत्ता कभी भी हमारी चुनाव प्रक्रिया का आधार नहीं रहा है। किसी व्यक्ति पर आपराधिक मामला साबित हो और वह सजा पाए, यह बाद की बात है।
इस प्रक्रिया में बहुत समय लगता है और तब तक आपराधिक लोग राजनीति में बने रहते हैं। इसलिए ऐसा कानून हो कि किसी पर कोई आपराधिक मामला लगता है तो जब तक वह उससे बरी नहीं हो जाता, तब तक उस पर किसी भी तरह के राजनीतिक चुनाव में भाग लेने पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। तभी राजनीति में अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों पर कुछ हद तक अंकुश लग पाएगा।
राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या पर अगर संसद भी रोक न लगा सकी, यानी इस विषय पर कोई कानून न बना सकी तो अपराधियों को राजनीति से दूर रखने के लिये दो ही रास्ते बचते हैं। एक यह कि राजनीतिक दल ऐसे लोगों को अपनी पार्टी से टिकट ही न दें, लेकिन वर्तमान में देश की राजनीति पर नजर डाली जाए तो ऐसी संभावना कम ही है। दूसरा उपाय यह है कि देश की जनता ऐसी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों का चुनाव ही न करे।
प्रीति अभिषेक, छपरा, बिहार।
हादसे की जवाबदेही
मध्य प्रदेश के सिहोर स्थित कुबरेश्वर धाम में अव्यवस्था के चलते दो महिलाओं की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इस प्रकार का कार्यक्रम गत वर्ष भी हुआ था और वह भी अव्यवस्था की भेंट चढ़ा था, जिसमें कई लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। आयोजकों को पिछले वर्ष के अनुभवों के अनुसार ही इस वर्ष कार्यक्रम की रूपरेखा और व्यवस्था न बिगड़े, इसकी योजना बनाकर ही कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए था।
कार्यक्रम स्थल सबसे व्यस्ततम मार्ग इंदौर-भोपाल रोड पर स्थित है, जिससे यातायात की स्थिति भी अनियंत्रित हो जाती है। कई लोग अपने जरूरी काम के लिए समय पर नहीं पहुंच पाते हैं। प्रशासन को प्रत्यक्ष रूप से इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन जब प्रदेश के मुख्यमंत्री भी इस कार्यक्रम में भाग लेने आ रहे थे, तो प्रशासन को सारी व्यवस्था अपने हाथ में ले लेनी थी।
आस्था और अव्यवस्था के सैलाब के कारण निर्दोष व्यक्तियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़े, यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। प्रशासन को इस प्रकार के आयोजनों के पूर्व व्यवस्थाओं संबंधी संपूर्ण बारीकियों को अपने संज्ञान में ले लेना चाहिए। मात्र दुर्घटनाओं पर दुख व्यक्त कर अपनी जिम्मेदारियों से बचा नहीं जा सकता है।
रामबाबू सोनी, इंदौर, मप्र।
एकता की राह
विपक्षी एकता के सूत्रधार के रूप में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पटना में विपक्षी नेताओं से मुलाकात से क्या विपक्षी एकता मुहिम की धार तेज होगी? यह एक बड़ा प्रश्न है। वास्तव में देखा जाए तो अब तक विपक्षी एकता के तार जुड़ नहीं पाए हैं और दावा है कि भाजपा को सौ सीटों पर ले आएंगे। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद का यह कहना कि पहले ‘आइलवयू’ कौन कहे, हल्के अंदाज में गंभीर बात कही है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री वाई चंद्रशेखर राव कांग्रेस और भाजपा से अलग तीसरा मोर्चा बनाने के लिए लगातार रैली कर रहे हैं।
दरअसल, नीतीश कुमार को एहसास है कि जनता दल (एकी) अगर राजद के नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री घोषित करती है तो कहीं पार्टी दो फाड़ न हो जाए। इसलिए विपक्षी एकता की मुहिम धीमी गति से चल रही है। बहरहाल, कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन में क्या कोई ठोस नीति बनेगी, यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा।
लेकिन उत्तर भारत की राजनीति में अगर मायावती, अखिलेश यादव, केजरीवाल, अभय सिंह चौटाला, तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और जयंत चौधरी जैसे कद्दावर राजनीतिक एक साथ नहीं आते हैं तो विपक्षी एकता किसी मुकाम पर नहीं पहुंचेगी। सच तो यह है कि भाजपा तेजी से 2024 की लोकसभा चुनाव की तैयारी में लग चुकी है। अधिकांश राज्यों में बड़े पैमाने पर योजनाएं घोषित की जा रही हैं।
मुफ्त राशन की योजना 23 दिसंबर तक बढ़ाकर शासन और सत्ता का रास्ता मजबूत किया जा रहा है। आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेताओं और राजनीतिक दलों को समन्वय समिति के गठन, न्यूनतम साझा कार्यक्रम और सीट साझा करने पर फैसला लेना चाहिए, तभी विपक्षी एकता की बात परवान चढ़ेगी ।कांग्रेस के तीन दिवसीय रायपुर अधिवेशन पर भी विपक्षी नेताओं की निगाहें लगी है। संभावना इस बात की प्रबल है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद विपक्षी एकता आकार लेती दिखाई दे सकती है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली गांव, दिल्ली
प्रतिभा पर बोझ
हर साल हमारे देश में और विशेष रूप से कोटा और दिल्ली जैसे कोचिंग केंद्रों में विभिन्न छात्रों द्वारा आत्महत्या से संबंधित कई खबरें आती हैं। वहां विद्यार्थियों पर जबरदस्त मानसिक दबाव होता है जो इस कदम की ओर ले जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण परीक्षा में विफलता, तंबाकू-नशा और प्रेम प्रसंग है। इन सभी समस्याओं को समाज और उनके अभिभावकों को संबोधित करने की आवश्यकता है।
माता-पिता, शिक्षकों और विद्यार्थी के बीच उचित संवाद स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि एक सकारात्मक वातावरण बनाया जा सके, जहां विद्यार्थी अपनी समस्या साझा कर सकें और आपसी बातचीत से समाधान तक पहुंच सकें।
अमन कुमार, आइआइटी रुड़की।