पाकिस्तान के साथ समझौते और बातचीत के सिलसिले तो सालों से चले आ रहे हैं, लेकिन हर बार नतीजा वही ढाक के तीन पात। इस बार भी एशियन समिट के बहाने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पाक के दौरे पर गर्इं। इस दौरे को लेकर देश में पहले ही राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। सुषमाजी जब पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और विदेश मंत्री सरताज अजीज से मिल कर वापस लौटेंगी तो वर्षों से चली आ रही बहस एक बार फिर से गरमा जाएगी, फिर चाहे बात करें आतंकवाद की, कश्मीर की या संघर्ष विराम उलंघन की, हर बार भरोसे के बदले भारत के हाथ धोखा और निराशा ही लगी है।
सवाल यह भी उठता है कि कश्मीर में और सीमा पर हालात अब भी गंभीर बने हुए हैं, फिर भी सरकार अपने बयान से पलट कर पाक से बातचीत क्यों करना चाहती है? पाक को आड़े हाथों लेने की बात करने वाली सरकार यू टर्न लेकर पाक से वार्ता करने के लिए बेताब नजर आ रही है।
इससे भाजपा के साथ उसके सहयोगी दल शिवसेना की भूमिका पर भी सवाल उठना लाजमी है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने भी समग्र वार्ता की शुरुआत की थी, जिसका अंत मुंबई हमलों के साथ हुआ। पाक के साथ समग्र बातचीत में समग्र सावधानी बरतना भी जरूरी है, क्योंकि जख्मों को हरा होने में वक्त नहीं लगता।
’वासु चौरे, एमसीयू, भोपाल</strong>