आजकल कई जगहों पर भारत को ‘हिंदू पाकिस्तान’ बनता देश कहा जाने लगा है। देश में मुसलिम विरोधी नफरत की लहर बढ़ती जा रही है। हाल ही में राजस्थान में मोहम्मद अफराजुल खान की लव-जिहाद के नाम पर बर्बर तरीके से हत्या कर की गई। इससे पहले भी लव जिहाद, गौ-हत्या का आरोप लगा कर मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया है। दूसरी ओर, गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान हिंदू-मुसलिम या फिर राम मंदिर का कार्ड खेला जाता रहा। सवाल उठता है कि क्या देश का नेतृत्व संभालने वाले व्यक्ति को संवैधानिक पद पर बैठ कर देश के सभी नागरिकों की चिंता नहीं करनी चाहिए। क्या प्रधानमंत्री मोदी देश के सभी लोगों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार नहीं हैं? माना कि आंतरिक सुरक्षा देना राज्य सरकार और उसकी पुलिस का काम है। मगर औपचारिक रूप से राजस्थान सरकार से इस मामले पर रिपोर्ट तो मांगा ही जा सकता था।
सच यह है कि आज मुसलिम समुदाय के बीच असुरक्षा की भावना चरम पर है। देश की पंद्रह फीसद आबादी के बीच यह भाव फैलना एक सभ्य समाज के लिए शर्मिंदा करने वाली बात है। हैरानी की बात है कि हमारा समाज अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा करने वालों को पुरस्कृत करता रहा है। 1984 में सिखों के कत्लेआम के बाद कांग्रेस को देश ने ऐतिहासिक बहुमत दिया था। 2002 के गुजरात दंगों के बाद भाजपा ने बहुमत के साथ सरकार बनाई। सवाल है कि क्या बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यकों को दबाने वालों का साथ देना पसंद करता है?
सांप्रदायकिता का जहर देश में राजनीतिक पार्टियों ने फैलाया है। खासतौर पर भाजपा को सबसे ज्यादा राजनीतिक फायदा राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से हुआ है। मंडल कमीशन के बाद कमंडल की राजनीति भाजपा ने ही शुरू की थी। लव जिहाद का फर्जी भूत भी भाजपा की ही देन है। विडंबना यह है कि इस तरह की सांप्रदायिक राजनीति की कीमत आम जनता को चुकानी पड़ती है। चुनाव मुद्दे की जगह धर्म और भावनाओं के आधार पर लड़ा जाता है। जनता सरकार से जबाव मांगने की जगह फिजूल के मुद्दों में फंसी रहती है। दो अलग-अलग आस्था वाले बालिगों के प्रेम में समाज दखलअंदाजी करता है। धार्मिक भावनाएं आहत होने के नाम पर नेता फिल्मों, किताबों पर प्रतिबंध तक लगवा देते हैं, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है। सांप्रदायिकता राजनीतिक पार्टियों के हित में है, आम जनता के हित में नहीं। 2020 में भारत दुनिया का सबसे युवा देश बनने जा रहा है। युवाओं को उससे पहले भारत को सांप्रदायकिता मुक्त देश बनाने का संकल्प लेना चाहिए।
’संदीप सिंह, लुधियाना</p>