हाल ही में प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के दौरान मरुस्थल, जमीन और जंगलों को बढ़ाने पर जोर दिया था। उन्होंने 2030 तक इसको और बेहतर करने का भी लक्ष्य रखा है। एक बार फिर कथनी और करनी में जमीन आसमान सा अंतर नजर आ रहा है। मध्य प्रदेश सरकार ने बक्सवाहा जंगलों को आदित्य बिरला समूह को दे दिया है। बताया जा रहा कि वर्ष 2019 में हुए बीडिंग में आदित्य बिरला समूह ने इसे पाया है। इस जंगल में दो लाख पेड़ के साथ साथ कई तरह के जानवरों के घर हैं। इतना ही नहीं, दशकों से काटे जा रहे पेड़, जलवायु परिवर्तन और मनुष्य जीवन को नित नए बीमारी और परेशानियों में डाल रहे हैं। ऐसे में प्रकृति का हनन कर सिर्फ पैसों के लालच में अगर इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं, तो यह निश्चित तौर पर देशवासियों के विश्वास के साथ खिलवाड़ होगा।
एक ओर राज्य और केंद्र सरकार ही एक तरफ इनको बढ़ावा देती है, दूसरी ओर पर्यावरण बचाने और पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करती है। मध्य प्रदेश में इन जंगलों को बचाने के लिए कई तरह के संगठन और प्रकृति प्रेमी आगे आए हैं। गौरतलब है कि इस जंगल के पास लगभग सात हजार गांववासी रहते हैं, जो पूर्ण रूप से अपने जीविकोपार्जन के लिए जंगलों पर निर्भर है।
क्या केंद्र और राज्य सरकारें भाषण और नारों से ऊपर उठ कर इन लोगों के हित में निर्णय लेंगी? विडंबना यह है कि अगर ऐसा होता तो सरकार ऐसे निर्णय पहले ही नहीं लेती। ऐसा लगता है कि एक बार फिर ‘चिपको आंदोलन’ की जरूरत है। हर वर्ग के लोगों को सामने आने की आवश्यकता है, तभी कुछ संभव हो पाएगा। यह बात समझनी चाहिए कि सरकार जनता से है, न कि जनता सरकार से। भारत के संविधान ने हमें लोकतंत्र की ताकत दी है। लेकिन हम सेवक को देश की चाभी पकड़ा कर राजा मानते हैं। ऐसे में अगर हर नागरिक जागरूक हो जाए तो जंगल भी बचेंगे और देश भी।
’अमन जायसवाल, दिल्ली विवि, दिल्ली
बेलगाम महंगाई
आमतौर पर जब जरूरी वस्तुओं के दाम बेतरह बढ़ने लगते हैं तब जाकर महंगाई सुर्खियों में आती है। पिछले कुछ महीनों पर नजर डालें तो देश मे खाने की जरूरी चीजों, जिसमें खाद्य तेल, दाल एवं अन्य खाद्य पदार्थों के दामों में भारी उछाल आया है। खाने के तेल की कीमत तो दुगनी से ज्यादा हो चुकी है। एक ओर महामारी के चलते रोजगार कम हुआ, लोगों की आय कम हुई, दूसरी ओर महंगाई तेजी से बढ़ रही है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है महंगाई पिछले तीस सालों में सबसे ज्यादा बढ़ी है। तकलीफ की बात यह नहीं है कि महंगाई बढ़ गई है, बल्कि यह है कि लोगों की आमदनी कम हो गई है। करोड़ों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। इससे सबसे ज्यादा आम जन जीवन प्रभावित हुआ।
रोजी-रोटी तक ठप रहने और खाने-पीने के संकट के दौर में हम समझ सकते हैं कि आम लोगों को कितनी परेशानी का सामना करना पड़ रहा होगा। अब पूरे देश में मानसून का आगाज हो चुका है। मानसून जब अपनी चरम सीमा पर रहेगा, तब बाढ़ की संकट गहराने लगेगा। बाढ़ से भी सबसे ज्यादा ग्रामीण इलाकों के गरीबों को सामना करना पड़ेगा। यानी हर तरह से गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को ही झेलना पड़ेगा। तो क्या इसका समाधान गरीबों को अनाज बांट कर हो सकता है? यह कह सकते हैं कि डूबते को तिनका सहारा।लेकिन इससे कुछ ठोस होने वाला नहीं है। आम आदमी को संकट से उबारना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए। अब यह कैसे होगी यह सरकार को सोचना चाहिए।
’अरुणेश कुमार, चंपारण
दौड़ के मैदान में
‘मिल्खा सिंह’ (संपादकीय 21 जून) पढ़ा। आज हमारे बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करने वाले और उसके समय-समय पर भारत को पदक दिलाने वाले मिल्खा सिंह कोविड-19 के कारण उनकी मृत्यु हो गई। सवाल यह है कि मिल्खा सिंह ने जिस प्रकार से अपना संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत किया और भारत का नाम रोशन किया, उन्होंने दो सौ मीटर और चार सौ मीटर की दौड़ में 1951 में पदक दिलाया, शायद वह पदक हमेशा साक्षी बन जाए। मिल्खा सिंह पर फिल्मी निमार्ताओं ने ‘भाग मिल्खा सिंह’ भाग फिल्म का निर्माण भी किया गया। समय-समय पर विभिन्न तरह के पुरस्कारों से मिल्खा सिंह को नवाजा। केंद्र और राज्य सरकारें इस तरह की शिक्षा संस्था का निर्माण करें, जिसमें मिल्खा सिंह की शिक्षा से प्रेरित होकर बच्चे आगे खेलों के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ा सकें। मिल्खा सिंह ने नए बच्चों को भी शिक्षा से प्रेरित कर कर आगे बढ़ने का अवसर मुहैया कराया।
’विजय कुमार धनिया, नई दिल्ली
हाशिये पर बच्चे
मौजूदा दौर में महामारी की वजह से स्कूल बंद हैं, बहुत से घरों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते लोगों को गरीबी झेलनी पड़ रही है और इससे बच्चों की शिक्षा पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है। आज भी ऐसे कई बच्चे हैं जो गरीब हैं। उनके पास न स्मार्टफोन है और न लैपटॉप। ऐसे बच्चों के लिए सरकार ने सरकारी स्कूलों का प्रबंध किया था, जिससे बच्चे मुफ्त में शिक्षा ग्रहण कर सकें, लेकिन कोरोना काल के चलते सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया और प्रशिक्षण का काम आॅनलाइन शुरू किया गया।
इस कोरोना काल में बच्चे घर पर रह कर स्मार्टफोन के जरिए अपनी शिक्षा प्राप्त करते हैं, लेकिन जो बच्चे गरीब हैं, जिनके पास ये सुविधाएं नहीं हैं, वे अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पा रहे और ऐसे कई बच्चे बाल मजदूरी करने लगे हैं, जो कानूनन अपराध है। लेकिन ये बच्चे दो वक्त की रोटी के लिए मजबूर हैं और स्कूल बंद होने की वजह से इनकी शिक्षा भी अधूरी रह गई। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने बताया है कि दुनिया भर में बाल मजदूरों की संख्या लगभग सोलह करोड़ हो गई है। इसका कारण गरीबी और स्कूलों का बंद रहना भी है। यह अशिक्षा को बढ़ावा दे रहा है। इसलिए सरकार से अनुरोध है कि वह ऐसी नीतियां और योजनाएं बनाए, जिससे बच्चे बाल मजदूर बनने से बच सकें और सुरक्षित स्कूल जाकर शिक्षा प्राप्त कर सकें।
’एकता, फरीदाबाद, हरियाणा