संपादकीय ‘सुधार की दरकार’ (4 अक्टूबर) पढ़ा। संयुक्त राष्ट्र अपनी स्थापना के पचहत्तर वर्ष पूरे कर चुका है। इस लंबी अवधि में दुनिया में कई तरह के बदलाव हुए। कोरोना महामारी के दौरान संयुक्त राष्ट्र की भूमिका बेहद अप्रासंगिक हो चुकी थी। अफगानिस्तान पर तालिबानियों के कब्जे के दौरान भी वह मूक दर्शक बना रहा।

दुनिया के सभी देश बदलाव की जरूरत महसूस कर रहे हैं, लेकिन इस दिशा में कदम कोई नहीं बढ़ा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य हैं- अमेरिका, रूस, चीन, इंग्लैंड और फ्रांस। इन पांचों देशों के ऊपर सुधार की जिम्मेदारी है, लेकिन उन्हें सिर्फ अपनी सत्ता को बचाए रखने में दिलचस्पी है। भारत स्थायी सदस्य बनने का प्रबल दावेदार है, लेकिन चीन के विरोध की वजह से यह नहीं हो रहा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकत्रांतिक और शांतिप्रिय देश है। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने दुनिया के कई देशों को वैक्सीन का दान दिया। संयुक्त राष्ट्र के अलावा भी दुनिया में और कई संगठन हैं। भारत ब्रिक्स और क्वाड का सदस्य है। अगर दुनिया की आवश्यकताओं को पूरा करने में संयुक्त राष्ट्र विफल रहा तो आने वाले समय में और संगठन अवश्य तैयार हो जाएंगे।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया

हादसों से मुक्ति

अच्छी सड़कें, फुटपाथ, पुल आदि देश की प्रगति के प्रतीक हैं, जिनके ठीक न होने से लोग जाम हादसों के साथ जानलेवा और दमघोटू प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं। इससे देश का विकास भी बुरी तरह बाधित है। इस बड़ी हानि से बचने के लिए अब तुरंत युद्धस्तर पर सुनियोजित विकास की सख्त जरूरत है, जिसमें सड़कें, फुटपाथ, चौराहे, नाले, पुल आदि सभी सही और शानदार हों और तेज गति वाले वाहनों और नागरिकों की लापरवाही पर भी उचित अंकुश हो। एक समान कानून से पूरे देश में जनसंख्या नियंत्रण भी बहुत ही जरूरी है जिस पर दुर्भाग्य से अभी सरकार का न जाने क्यों कोई विशेष ध्यान और रुचि नहीं है।
’वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली</p>