खर्च की सीमा (संपादकीय) में एक जरूरी मुद्दा सशक्त ढंग से उजागर किया गया है। चुनावों में प्रत्याशी के खर्च की तो सीमा तय की गई है, पर राजनीतिक दल की नहीं और इसी का फायदा उठा कर प्रत्याशी चुनाव में बेतहाशा खर्च कर लेता है। क्या यह महत्त्वपूर्ण तथ्य विद्वान नीति निर्धारकों की नजरों से नहीं गुजरा होगा? ऐसा नहीं लगता कि नियम बनाते वक्त सम्माननीय नियामकों को उनसे बचने की गलियों का पता नहीं होता।

  • संतोष सुपेकर, उज्जैन

उलटा दांव

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस प्रकार पंजाब में अपनी सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए हैं, उसका निश्चित रूप से आने वाले चुनाव में विपरीत असर पड़ेगा। पंजाब के किसान और जनता पहले से ही भाजपा से नाराज हैं और अब प्रधानमंत्री के इस आक्षेप से अंदर तक आहत महसूस कर रहे होंगे। जिस प्रकार पश्चिम बंगाल में ‘दीदी ओ दीदी’ कह कर ममता बनर्जी को संबोधन करना भाजपा के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ, वैसा ही कुछ पंजाब में भी हो सकता है।

  • नवीन थिरानी, नोहर

खर्च में बढ़ोतरी

भारतीय निर्वाचन आयोग के अनुसार अब उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में चालीस लाख और लोकसभा चुनाव में पंचानबे लाख रुपए तक खर्च कर सकेंगे। कहीं निर्वाचन आयोग का यह निर्णय वोट और नोट के अंतर को और करीब न ले आए। चुनावों में उम्मीदवार निर्वाचन आयोग के नाक के नीचे जनता के सामने कई प्रलोभन परोसते रहे हैं। इस निर्णय ने उनको और भी छूट दे दी है। हाल ही में उत्तरप्रदेश और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनावों में इसका असर भी दिखने लगेगा।

  • अनुशांत सिंह, ग्वालियर