मराठबाड़ा जालना जिले में एक किसान अपनी मौत का निमंत्रण भेज कर गांव वालों को बुलाता है और खुदकुशी कर लेता है यह कह कर कि वह लोगों को अपनी बेटी की शादी का निमंत्रण भेजने की हैसियत नहीं रखता। हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित छात्र रोहित वेमुला लेखक बनना चाहता था। वह विज्ञान पर, प्रकृति पर लिखने की हसरत रखता था। लेकिन वह मर गया एक पत्र लिखकर।
पत्र भी आखिरी था जिसमें उसने इस घिसी-पिटी व्यवस्था की सारी पोल खोल दी। उसके एक पत्र ने देश में जाति की ओछी राजनीति और राजनीति की जाति की पूरी कहानी ही लिख डाली। तीसरी घटना देश की राजधानी दिल्ली की है जहां सरेआम सुरक्षा की सभी परतों को तोड़ एक महिला मुख्यमंत्री तक जा पहुंचती है और उस पर स्याही फेंक कर यह साबित कर देती है कि आम आदमी जब जिद पर आ जाए तो उसे काबू में करना आसान नहीं होता।
ये घटनाएं एक ऐसे देश में हुर्इं जहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी युवाओं की है, जहां वीर जवानों के साथ मेहनतकश किसानों की भी ‘जय’ बोली जाती है। जो देश दुनिया का सबसे महान लोकतंत्र होने का गौरव पा चुका है। इस देश में आखिर कौन सुरक्षित और चैन से जीवन जी रहा है? हमारे चारों और ऐसा दहशत का माहौल बना दिया गया है जिसमें सांस लेने में भी सौ बार सोचना पड़ता है।
कहीं धर्म के नाम पर कत्ल कर दिया जाता है, कहीं जाति के नाम पर उत्पीड़ित-उपेक्षित किया जाता है।हाल में ही बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ है। प्रदेश और प्रदेश के बाहर एक वातावरण बनाया गया कि यहां सिर्फ जाति के नाम पर वोट लिए और दिए जाते हैं। तब बिहार से बाहर यह घटना क्यों? दरअसल यह एक राज्य और एक प्रदेश की बात नहीं रह गई है। यह सब हमारे खून में इस तरह से मिल गया है कि उसे हम अलग नहीं कर पा रहे हैं।
देश में किसानों के लिए, छात्रों-नौजवानों के लिए कोई योजनाएं नहीं बनाई जा रही हैं जिससे हमारी क्षुधा शांत करने वाले किसान से लेकर देश की तकदीर गढ़ने वाला छात्रों तक सभी लाचारी और किंकर्तव्यविमूढ़ता के बोझ से दबे चले जाते हैं और अंत में ऐसा रास्ता खोज लेते हैं जिस पर चलना शायद आसान नहीं होता है। कहने को ये तीन अलग-अलग घटनाएं हैं लेकिन इन सबमें एक संबंध है। ये तीन घटनाएं एक तरह की हत्या हैं लोकतंत्र की, किसी के जज्बात की, किसी के भरोसे की!
’अशोक कुमार, तेघड़ा, बेगूसराय