अभी हम सबने विश्व पर्यावरण दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया। भारत में भी इसकी खूब चर्चा हुई। लोगों को पर्यावरण की रक्षा करने को कहा गया। ठीक इसके दूसरे दिन ही पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक-2022 में भारत की स्थिति को दुनिया के तमाम देशों में सबसे खराब दर्शाया गया।

ऐसा कभी नहीं हुआ कि 180 देशों की सूची में हमारा स्थान सबसे अंतिम पर पहुंच गया। इससे नीचे जाने की अगर गुंजाइश होती, तो शायद हम और नीचे जाते। हमारे प्रधानमंत्री ने पिछले साल ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कितनी बड़ी-बड़ी बातें कह कर आए थे। मगर उसका नतीजा सिफर निकला।

हमारी सरकारों के कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर होता है। मसलन, छत्तीसगढ़ की सरकार को ही ले लीजिए। उत्तरी छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य का इलाका, जो एक लाख सत्तर हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है, यहां पिछले कई दिनों से आदिवासी धरने पर बैठे हैं।

इसलिए कि सरकार वहां के लाखों पेड़ कटवा रही है, ताकि कोयला खनन के लिए रास्ता साफ किया जा सके। सरकार आदिवासियों को डरा-धमका कर वनों को काट रही है। ऐसे में भला हम पर्यावरण की रक्षा कैसे कर पाएंगे?

जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर