यह सच्चाई है कि दान करने से व्यक्ति को आत्मसंतुष्टि मिलती है। दान करना पुण्य का काम माना गया है। दान करने से मन और विचारों में खुलापन आता है, यह एक मनोवैज्ञानिक लाभ है। दान करने के संदर्भ में हमें प्रकृति से सीख लेनी चाहिए। जिस तरह वृक्ष परोपकार के लिए फल देते हैं, उसी प्रकार नदियां भी परोपकार के लिए जल देती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दान करने से इंसान के भीतर त्याग और बलिदान की भावना आती है। इसलिए हमें भी निस्वार्थ भाव से दान करना चाहिए। लेकिन इस दुनिया में कई लोग हैं, जो पास में बहुत कुछ रहते उसका थोड़ा-सा दान कर देते हैं और वह भी यश की कामना से। उनकी यही परोक्ष कामना उनके दान को अपर्याप्त बना देती है।
संसार में ऐसे भी लोग हैं, जिनके पास बहुत थोड़ा है और वे सारा दे डालते हैं। ये जीवन में और जीवन की संपन्नता में आस्था रखने वाले लोग होते हैं और इनका भंडार कभी खाली नहीं होता। ये वही लोग हैं, जो प्रसन्न होकर दान करते हैं और यही प्रसन्नता उनका पुरस्कार है। इस संसार में एक अलग वर्ग के भी लोग हैं, जो कष्ट से दान करते हैं और यही कष्ट उनका ईमान है। दान करने वालों में एक और भी वर्ग है, जो सभी में सर्वश्रेष्ठ है। ये वे लोग हैं, जो दान करते हैं और उन्हें दान करते कष्ट नहीं होता, न उन्हें प्रसन्नता की कामना होती है, न पुण्य कमाने की। यह दान, जैसे किसी एकांत घाटी में हिना अपनी महकती हुई सांसों को पूरे वातावरण में बिखरा देती है, उसी भांति ही है। इसी तरह, हमें भी मानवता धर्म पर कायम रहने की कोशिश करनी चाहिए। कहा भी गया है कि किसी की याचना पर दान करना अच्छा है, लेकिन उससे कहीं अच्छा है बिना मांगे स्वेच्छा से देना। वह भी निस्वार्थ भाव के साथ।
-अली खान, जैसलमेर, राजस्थान</p>