संपादकीय ‘शिक्षा की उड़ान’ (21 अप्रैल) पढ़ा। आज सूचना क्रांति के दौर में उच्च शिक्षण संस्थानों में बेहतरी एवं कौशल विकास संबंधी नए पाठ्यक्रमों को जोड़ने की सिफारिश की जाती रही है, लेकिन धन की कमी की वजह से संस्थानों के लिए संसाधन जुटाना एक चुनौती भरा कार्य बन गया था। संस्थानों द्वारा फीस में बढ़ोतरी के बावजूद पर्याप्त धन की व्यवस्था नहीं हो पाती। शिक्षण संस्थानों की आपसी प्रतियोगिता के लिए नैक द्वारा मूल्यांकन प्रक्रिया अपनाई जाती है।
यह मूल्यांकन प्रक्रिया भी शिक्षण संस्थाओं में मनोवांछित लाभ पहुंचाने में सफल नहीं हो सका। निजी संस्थानों की अत्यधिक फीस होने की वजह से कई छात्र विदेश की ओर रुख करते हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्वदेशी संस्थानों को विदेशी संस्थाओं के सहयोग से छात्रों के लिए एक समय में दोहरी डिग्री का प्रावधान किया है। इस सुविधा के लिए यूजीसी की इजाजत की कोई जरूरत नहीं है, सिर्फ शिक्षण संस्थानों का नैक द्वारा मूल्यांकन न्यूनतम 3.01 होना चाहिए।
नए प्रावधान से शिक्षा को एक नई ऊंचाई मिलेगी। छात्रों को एक ही साथ दो डिग्री हासिल हो सकेगी और विश्वस्तरीय शिक्षा का लाभ उठा सकेंगे। अब भारतीय छात्रों को विदेश जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। देश में शिक्षा का स्तर ऊपर उठेगा और अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
- हिमांशु शेखर, केसपा, गया